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प्रश्नव्याकरणसूत्र नतण्हपत्थाणपत्थोइमइय ' अघोस्निनगमस्थान-प्रम्नीमतिक = अयोगतो अच्छिन्नताणाना-पिपयलोलुपाना यत् गस्थान-गमन तर प्रस्तोत्री-प्रातिका मतिः = बुद्धिरस्ति यस्मिन्नानादाने नरथा नरकाययोगतिकारणमित्यर्थः, 'अकित्तिकर' अकीर्तिकरम् अयमसरम् 'अणज्ज भनार्यम् = अनार्याचरितत्वाद अधया अन्याय न्यायनित न्यायरहितमित्यर्थः 'मितरपिपुरवसगमगणउस्सरमत्तप्पमत्त-पमुत्तववणाश्मिरण -घायणपराणिहुय-परिणामवपरजणाहुमय' छिद्रान्तरविधुरग्यमनमार्गणोत्सगत्तप्रमत्तामुप्तचनाऽऽक्षेपगघातनपरानिभृतपरिणामतस्करजन बहुमत-तत्र छिद्र = 'केन मार्गेण गन्तव्य' मित्पादिकम् । अन्तरम् भवसर जनाना निद्रादिलक्षगः, विधुर = अपाय: कष्टप्राप्त्यादिलक्षण, विपमस्थानों को अदत्तादान का कारण कहा गया है। (अहा अच्छिन्नतडपत्याणपत्योहमाय ) जिन व्यक्तियों की विषय तृष्णा छिन्न नहीं होती है ऐसे व्यक्ति ही अधोगति में पहुँचाने वाली अपनी बुद्धि के द्वारा इस अदत्तादान मे प्रवृत्ति करते है. अत. अधोगति म गमन की कारणभूत जो विषय लोलुपों की मति है वह भी इस अद त्तादान की एक कारणभ्रत है। यह अदत्तादान (अकित्तिकर ) अयश कारक है। (अणन ) अनार्यो द्वारा ही आचरित किया जाता है इस लिये अनार्यरूप है। अथवा नीतिमार्ग से विरुद्ध होने के कारण अन्याय्य है । (छिद्द) इस अदत्तादानको करने वाले व्यक्ति इस पातकी गवेषणाम रहते हैं कि हमे इस कामको करने के लिये किस मार्गसे होकर जाना चाहिय तथा (अतर) अन्तर की-कौनसा अवसर इस कामको सिद्ध करनेवाला होगा इस तरह के मनुष्योंके निद्रादिरूप समयकी (विधुर) विधुरकी-कष्ट भने भन्थानात महत्ताहाननी माश्रयस्थान तान्या छ ' अहो अच्छिन्न तण्हपत्याणपत्थोइमइय" नी विषय वासना न थती नथी मेवा લેકે જ અધોગતિમ લઈ જનાર પોતાની બુદ્ધિ દ્વારા, આ અદત્તાદ પ્રવૃત્ત રહે છે, તેથી અગતિમાં ગમન કરવાના કારણરૂપ વિષય લેલુપાના જ भतिछत पण या महत्तहान भाटा२३५ छ. न महत्ताहान " आकार कर" मीति अावना छ, “ अणज्ज " मनादास सेवातु का અનાર્યરૂપ છે, અથવા નીતિ માર્ગથી વિરુદ્ધ હોવાથી અન્યાયયુક્ત છે " छिह " मा २५त्ताहान सेवनार व्यहित मे पातनी शोधमा રહે છે કે આ કામ કરવા માટે આપણે કયા માર્ગે થઈને જવું જોઈએ ता" अतर" मतरनी-डयो पसत मा भने सिद्ध २५॥ भोट 43 થશે તેની શોધમાં રહે છે આ રીતે માણસના નિદ્રાદિ સમયની શોધમાં
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