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नव्याकरणसूत्रे
एव ते भवपरंपरादुक्खसमणुवद्धा अडति ससारवीहणकरे जीवा पाणाइवाय निरया अनंतकालं ॥ सू० ४५ ॥
टीका- 'कोदाल- फुलिय - दालण-सलिल-मरण- सुभण-रुमण अणलाणिल चिविह सत्यघट्टण परोप्पराभिहणण मारण चिराहणाणि कुदाल्कुलिन्दारण सलिल मलन क्षोभण रोधनानलानिक विविध शत्रुघन परस्परामिडननमारणविराधनानि, रात्र - ' कोदाल ' कुद्दाल =भूविदारक शस्त्रविशेष: ' कुलिय ' कुलिक च हलविशेषस्ताभ्या' दालण ' दारण-खननम् एतद् द्वय पृथिवी वनस्पत्योर्वेदना कारणम् सलिलस्य = जलस्य मलन क्षोभणरोधनानि, तत्र-मलन - मर्दन, क्षोभण= सञ्चालन, 'रुमण ' रोधन = निरोधन तडागादी, अनेनात्कायवेदना व्यक्तीकृता,
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पृथिवी आदि जीवों में चेदना के कारण क्या २ हैं ? सूत्रकार अब इस विषय को स्पष्ट करते है- ' कोद्दाल-कुलिय ' इत्यादि ।
टीकार्थ - ( कोदाल-कुलिय दारुण सलिलमलण-खुभण रुमण- अणलाणिल विवि-सत्यघट्टण परोप्पराभिहणणमारणाविराहणाणि य) (कोद्दाल) कुद्दाल-कुदाली और (कुलिय) कुलिक - हल विशेष, ( दालण ) इनसे भूमिका विदारण करना - खोदना, ये दो पृथिवी और वनस्पति जीवों के वेदना के कारण है ( सलिलमलण ) पानी का मर्दन करना, ( खुण ) चलाना, और (रुमण ) तडाग आदि मे रोकना ये बातें अकाय के जीवों के लिये वेदना के कारण हैं। चुल्ली आदि में पानी डालता आदि रूप जो क्रियाएँ की जाती हैं इसका नाम मर्दन है | क्षोभण शब्द का अर्थ चलाना है | कही पर भरे हुए पानी को बाहिर निकालने आदिरूप
હવે સૂત્રકાર ને વિષયને સ્પષ્ટ કરે છે કે પૃથિવી આદિ જીવેામાં વેદनाना अरशी या या छे - " कोहाल-कुलिय " छत्याहि
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भण
टीअर्थ - " कोदाल - कुलिय- दारण-सलिल-मलण-खु भण-रुमण - अणलाणिलविवि - सत्य घट्टण - परोप्पराभिहणण मारण विरोहणाणि य" "कोद्दाल" जहाजी भने “कुलिय” हुलि-हुज विशेष वडे, "दारण” लूमिने मोहवी ते पृथिवी अने वनस्पति भवाने वेहनाना अरखे छे " सउलि मलण " पाथीनु भर्छन २५ ચલાવવુ અને જ્મન” તાવ દિમા શકવુ તે અપ્રકાયના જીા માટે વેદનાનુ કારણ છે ફૂલ દિમા પાણી નાખવા વગેરેની જે ક્રિયાઓ થાય ૐ તેને મન કહે છે કોમળ ને અર્થ ચલાવવુ થાય છે કેાઈ જગ્યાએ ભરાઇ રહેલા પાણીને ખહર કાઢવાની જે ક્રિયા થાય છે તેને ચલાવવુ કહે
"