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सुदर्शिनी टीका अ० २
सू०
• अलोचनामानि
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मओ' असम्मतः न्यायज्ञैरनाचरितः, (२६) ' असन्चसपत्तण' असत्यसन्धत्वम्असत्य-सन्दधाति सम्मिश्रयति सतत य' सोऽसत्यसन्यस्तस्य भावोऽमत्यसन्धत्व =यृपाभापि धर्मः, (२७), 'विजय' विपक्ष =पत्य प्रतिकृल्यात् (२८) उनहि य' औषधिक= मायामयम् = कपटगृहमित्यर्थः, (२९) उनहि समृद्ध उप यशुद्धम् = उपधिः सा धकर्म तेनाशुद्वम्, (३०) 'अलोकोचि' जपलोप इति कुर्राणोऽपि 'नाह करोमि किञ्चिदित्यादिभिर्वस्त मच्छादनम् 'नियस्स द्वितीयस्याधर्म द्वारस्य ' उमाणि ' इमानि = पूर्वोक्तानि 'माइयाणि ' एवमादिकानि - अलीकादीनि 'सावज्जस्स ' सानग्रस्य पापसहितस्य ' अल्यिस्स' अलीकस्य = मृपात्रा
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न्यायज्ञ पुरुषों द्वारा यह असमत है - वे पुरुष इसका कभी भी सेवन नहीं करते है इसलिये यह असमत हे २५ । यह मृपाभाषियों का धर्म है इसलिये इसका नाम अमत्यसघात है २६ । सत्यभाषण का यह विपक्षी है इस इसका नाम विपक्ष है। कपड़ों का यह घर है इसलिये इसका नाम औषधिक है २८ | सावद्यकर्मो से यह सतत अपवित्र बना रहता है इसलिये इसका नाम उपध्यशुद्ध है २९ । उपधि शब्द का अर्थ सावद्यकर्म है। कार्य करता हुआ भी व्यक्ति इसके प्रभाव से प्रभावित होकर करदिया करता है कि में कुछ भी नहीं कर रहा हैं । इस तरह इसके द्वारा वस्तु का प्रच्छादन होता है अतः इसका नाम अलोप है ३० | ( चियम्स ) इस तरह द्वितीय अधर्मद्वार के (इमाणि) ये पूर्वोक्त अलीक आदि (तीस नामवेज्ञाणि) गुणनिष्पन्न तीस नाम है । तथा ( एवमाइयाणि ) इनसे अतिरिक्त और भी इमी
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તેને માન્ય કરતા નથી તેએ તેનુ કદી પણ સેવન શ્તા નથી, તેનુ નામ " असमत ” (૨૬) તે અસત્ય વચન મૃષાવાદીઓને ધમ છે, તેથી તેનુ નામ असत्यसघात” ) (२७) सत्य लाधगुनु ते विपक्षी - विद्धनु छे, तेथी तेनु નામ " विपक्ष " छे (२८) उपटोनु ते घाम छे, तेथी तेनु नाभ" औषधिक छे (२८) भाषा थी ते सतत अपवित्र रहे छे, तेथी तेनु नाभ, 'उप ध्यशुद्ध " छे 'उपधि' गहन अर्थ सावध उर्भ छे, (30) जर्य पुरती व्यક્તિ પણ તેના પ્રભાવની અમર નીચે આવી જઈને કહી દે છે કે “ ३६ કરતા નથી ” આ રીતે તેના દ્વારા વસ્તુનુ પ્રછાદન થાય છે, તેથી તેનુ नाम "अपलोप" हे " निइयास " या रीते मील सधर्भहारना " इमाणि " पूर्वोत असी माहि " तीस नाम घेज्नाणि गुणानुसार श्रीम नाम छे तथा एवमाइयाणि " ते उपरान्त भीम यशु ते अजरना “ सीवज्जरस" पाथ
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