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प्रश्नव्याकरणस्ने
'लोगो' लोका=पृथिव्यप्तेजोवाननस्पतितिर्यइनरामरनारकरूपः, ' अडकाओ' अण्डकात् ' सभृओ ' सभूतः = उत्पन्नः तत्र अण्डकोभूतलोम्यादिना मतमित्थ यत् पूर्वं पृथिव्यादिपञ्चभूतरहित जगत् केवल जन्मयमासीत् तत्र महदण्ड चिरकाल विक्ले दिन सत् स्फुटितद्विधानात पृथिवीरूपम् आकाशस्प च, छत्र सुरासुरनारकतिर्यग् रूप जगत् सर्वे समुत्पनमित्येवमण्डका सृष्टिः । ' सर्य भुणा' स्वयम्भुवा चन्नह्मणा 'सय' स्वय ' निम्मिओ' निर्मितः निष्पादितः इति केचित् ब्रुनन्ति । तथाहि दृश्यमान - जगदुत्पत्तेः पूर्वं पृथिव्यादि पञ्चभूतरहित विनष्ट स्थावरजद्गमामरनरगन्धर्वयक्षराक्षस किन्न र गरुडमहोरगादि सकलनिविध
(पण्णवेंति) प्ररूपित करते हैं, मृषावारूप यह दर्शन यह है- (लोगो अडकाओ सभूओ ) यह पृथिवी अपू, तेज, वायु वनस्पति, तिथेच, मनुष्य, देव, नारकरूप लोक अडे से उत्पन्न हुआ है । अडे से लोक को उत्पन्न हुआ मानने वालो का मत इस प्रकार है यह लोक पहले पृथिवी आदि पाँचभूतों से रहित था, और केवल जलमय ही था । इसमें एक चिरकाल से गीला अडा पड़ा हुआ था, जब वह फटा तो इसके दो टुकडे हुएएक टुकडा पृथिवीरूप हुआ और दूसरा टुकडा आकाशरूप हुआ- पृथिवी रूप टुकडे में मनुष्य, तिथेच, नारक आदिरूप तथा आकशरूप टुकडे में सुर असुर आदिरूप समस्त जगत् उत्पन्न हो गया । इस तरह अडे से यह सृष्टि हुई वे कहते है | ( सयभ्रूणा सय च निम्मिओ) कोई २ ऐसा भी कहते हैं कि यह जो दृश्यमान जगत् है वह उत्पत्ति से पहिले पहिले पृथिवी आदि पचभूतों से रहित था। इसमें स्थावर, जगम, अमर,
छे ते भृषावाहय दर्शन मा अभाषेनु छे - " लोगो अडकाओ सभूओ " मा पृथ्वी, अधू, तेन वायु, वनस्पति, तिर्यय, मनुष्य, देव ने नार९३५ सोअ ઈંડામાથી ઉત્પન્ન થયા છે. ઇંડામાથી સૃષ્ટિ ઉત્પન્ન થયેલ માનનારની આ પ્રકા રની માન્યતા છે આ લેકે પહેલા, પૃથિવી આદિ પાચ ભૂતાથી રહિત હતા અને ફક્ત જળમય જ હતેા તેમા એક ચિરકાળથી ભીનુ ઈંડુ પડેલું હતુ જ્યારે તે ફાયુ ત્યારે તેના બે ટુકડા થયા-એક ટુકડા તે પૃથિવીરૂપ થયા અને ખીન્ને ટૂકડા આકાશરૂપ થયેઃ પૃથિવીરૂપ ટુકડામા મનુષ્ય, તિર્યંચ, નારક આદિ રૂપ તથા આકાશ રૂપ ટુકડામા સુર અસુર આદિ રૂપ સમસ્ત સૃષ્ટિ ઉત્પન્ન થઈ ગઈ આ રીતે ઇડામાંથી સૃષ્ટિ ઉપન્ન થયાનુ તેએ દર્શાવે છે " सयभुणा सय च निम्मिओ" अा अा शेवु पायु उहे छे हैं या ने भगत नमरे पडे છે તે ઉત્પત્તિ પહેલા પૃથિવી આદિ પાચ ભૂતાથી રહિત હતુ તેમ
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