________________
२१६
प्रश्नध्याकरणसूत्र
धमणदुहणपोसणवणणदुवणवाहणादियाइं साहेति वहूणि गोमियाण, धाउ--मणि-सिल-पवाल-रयणागरे य साति आगरीण, पुप्फविहि च फलविहिं च साहेति मालियाणं अस्थमहुकोसए य साहेति वणचराणं ॥ सू० ११ ॥
टीका-' एवमेव जपमाणा' एवमेव जल्पन्तः पूर्वोक्तरीत्या सावधमबुद्धि पूर्वक वक्ष्यमाणं भापमाणा, 'महिसे सूकरे य साति घायगाण' महिपान् सुकराव साधयन्ति घातकाना= तस्मिन् वने रद्दयो महिपासाराय सन्ति गच्छ तो' त्यादि तेपा घातकान् प्रति क्ययन्ति तथा ' ससपमयरोहिसे य सोहे ति वागुरीण' शशपसयरोहिपाथ साधयन्ति वागुरिणां तत्र शशामसिद्धाः पसयन देशी शन्दोऽय मृगपाचक, रोहिपा:-मृगरिगेपा एव, तान् जालेन मृगपातकान् प्रति 'तत्र मृगा -सन्ती'ति साधयति-स्थयन्ति, तितिरवगलामगे य कविजल
फिर क्या करते हैं सो कहते हैं-' एवमेव' इत्यादि।
टीकार्य-( एवमेव) पूर्वोक्त रीति से अद्विपूर्वक (जपमाणा) वक्ष्य माण आगे कहे जाने वाले सावध वचनों को करते हुए वे महिषादि प्राणियों को शिकारी के लिये पतला देते हवे इस प्रकार-(महिसे करे य घायगाण साहेति) महिपों और सूफरों को भरवाने के अभिप्राय से घातको के प्रति " उस वन मे जाओ वहा अनेक महिष और सूकर है" इस प्रकार करते हैं। तथा ( ससपमयरोहिसे यसाहेति वागुरीण) शश-ग्वरगोश, पसय-मृग एव रोहिप-मृग विशेष, इन्हें वागुरिकाजाल से पकडने वाले मृग घातकों से अर्थात् अहेरियों से-जाओ उस वन में बहुत से मृग आदि जानवर हैं उन्हें मारो इस प्रकार कहते
गीत भृषावाही शु ४२९ छ-" एवमेव" त्यात साथ-"एवमेव" पूरित प्रारे अमुद्धिपूर्व "जपमाणा" मा उवामा આવનાર સાવદ્ય (પાપયુક્ત) વચને કહીને તેઓ મહિષાદિ પ્રાણીઓ શિકારીને બતાવી દે છે તે આ પ્રમાણે છે
"महिसे सूकरे य घायगाण साहेति" ५। मने सूपरनी उत्या ४२वान માટે શિકારીઓને તે કહે છે કે “આ વનમાં જાઓ ત્યા અનેક પાડા અને २१२ छ" तथा " ससपसयरोहिसे य साहेति यागुरीण' तथा सससा, भूक અને હિષ-મૃગ વિશેષ-ને જાળથી પકડનાર વાઘરી આદિમૃગઘાતકોને તે
' सी, 1 वनमा ५५ भृाहिननपरे। छ, तभने भाग ।