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सुदर्शितटीका अ० २ ० ५-६ नास्तिकवादिमतनिरूपणम् शब्दादिपु 'बट्टेह' वर्तध्व शमादीन् सर्वविषयान् यथेच्छमुपभुध्वम् , 'नत्थि' नास्ति 'काइ ' काचिदपि 'किरिया अफिरिया पा' क्रिया = तत्र - सक्रिया शास्त्रोक्तानुष्ठानरूपा । अक्रिया अमलिया सावधकर्मानुष्ठानस्पा, आस्तिक कल्पितेनाप्रमाणत्वात् , एव 'नत्यिकवादिणो' नास्तिकमादिनः 'वामलोगवादी! वामलोकवादिनश्च भणन्ति कथयन्ति ॥ स० ५॥ पुनरपि तानेवाद-उमपि ' इत्यादि
मूलम्-इमंपि विइय कुदसणं असम्भाववाइणो पण्णति मूढा संभृओ अडकाओ लोगो सयभुणा सय च निम्मिओएवं एय अलिय पय पति ॥ सू० ६॥
टोका-इदमनुपदरल्यमाणमपि 'विदय' द्वितीय 'कुदसण' कुदर्शन = कुत्सित दर्शन असत्यसिद्धान्तम् ' असम्भावधाइणो' असदारवादिनः = अमन्तो भावाः येषा ते तथा ते च ते पादिनस्तथा मृढा ‘पणति' प्रज्ञापयन्ति यत् शब्दादि सय विपयों में ( वह ) इच्छानुसार प्रवृत्ति करते रहना चाहिये। (नत्थि काड किरिया अकिरिया वा) शास्त्रोक्तअनुष्ठान रूप न कोई क्रिया-सत्किया है और न सावद्यकर्मानुष्ठान रूप कोई अक्रियाअसक्रिया है तो केवल आस्तिकवादियों की कोरी कल्पनाएँ हैं। इनमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है । (नधियवाइणो वामलोगवाई ) नास्तिकवादी और वामलोकवादी (एव भणति ) इस प्रकार करते है वह सय कथन मृपावादरूप है ॥ ५॥
फिर कहते है-'इम पि पिडय' इत्यादि।
टीसरार्थ-अनुपद वक्ष्यमाण (इमपि विडय) यह दूसरा कुदर्शन भी कि जिसे ( असम्भाववाहणो ) असद्भाववाढी तथा (मूढा ) मूढजन "वट्टेह " आनुमा२ प्रवृत्ति या वीमे “ नथि काइकिरिया अफिरिया वा" श्रोत मनुष्ठान३५ 35 ठिया मत उिया नथी, साधर्मानुष्ठान રૂપ કોઈ અક્રિયા અસલ્કિયા નથી, તે તો કેવળ આસ્તિકવાદીઓની ખાલી ક૬૫नाम छ तमा ५६ वास्तविsता नथी" " नत्यियवाइणो वाम लोगवाई" नातिवादी आने वामनावाही " एर भणति" ते २ मा उ छ, તે તેમનું કથન મૃષાવાદ છે કે સૂ–પ છે
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थ-नीय प्रमाणुनु "इम पि बिइय" मी पुन २ " असम्भावयाइणो" असहमावाही तथा "मूढा" मूढ as "पण्णवे ति" ५३पित ४२