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प्रभायाकरण उवहणंता-मित्तकलत्ताइ सेवइ । अयंपि लुत्तधम्मो । इमो वि वीसभघायओ, पापकम्मकारी अगम्मगामी । अय दुरप्पा बहुएसु य पातगेसु जुत्तो ति । एव जंपति मच्छरी भद्दगे वा गुणकित्तिनेहपरलोगनिप्पिवासा। एव एए अलि. यवयणदक्खा परदोसुप्पायण संसत्ता वेढेति अक्खडय वीएणं अप्पाण कम्मवधणेण मुहरी असमिक्खियप्पलावी ॥सू॥
टीका-अवरे अपरे अन्ये केचित् 'अहम्माओ' अधर्मत =असत्यवचनरूपमधर्म मेव स्वीकृत्य 'रायदुष्ट' राजदुप्टनीतिविरुद्धम्, 'अभखाण' अभ्याख्या नम् असत्यदोपारोपण 'अलिय' अलीक 'मणति 'अकृतमपि कार्यक्ल्पयित्वा जनसमक्षे कथयन्ति । कथमित्याह-' चोरोत्ति' इत्यादिना-'अचोरिय करेंत' औचार्य कुन्त अचोरयन्त जन प्रति 'चोरोत्ति' चोर इति कथयन्ति । 'एमेव'
और भी मनुष्य जिस प्रकार असत्य भापण करते है उसीको दिख लाते हैं-'अवरे अहम्माओ' इत्यादि । ___टीकार्थ-(अवरे ) कितनेक मनुष्य (अम्माओ ) असत्य वचनरूप अधर्म को ही स्वीकार करके (रायदुट्ट) नीति विरुद्ध (अन्भक्खाण) असत्य दोपारोपणरूप (अलिय) अलोक वचन को (भणति) करते हैं, नहीं किये गये भी कार्य को उसमें कल्पित करें जन समक्ष में कह दिया करते है कि ( अचोरिय करेत चोरोत्ति ) चोरी नहीं करने वाले को भी यह चोर है' ऐसा कर देते है, अर्थात जिसने कभी भी चोरी नही की है-ऐसे पुरुष को भी चोर देते हैं, कह तथा (एमेव ) इसी
બીજા મનુષ્ય પણ જે પ્રકારે અસત્ય બોલે છે તે સૂત્રકાર બતાવે છે" अवरे अहम्माओ" त्या
साथ-"अवरे" सा भासो' 'अहम्माओ" असत्य क्यन३५ मधर्मना १ स्वी॥२ ४शन "रायदुव" नीतिवि३६ “अन्मस्साण " मसत्य हो। ३५ " अलिय " मी वयना "भणति" ४ छ, न उसय जय ना ५९
नाशन सोनी समक्ष उl उरे छ भ3-"अचोरिय करेत चोरोत्ति" ચારી ન કરનારને પણ “આ ચાર છે” એવું કહે છે એટલે કે જેણે કદિ पक्ष न्यारी उरी डाय तवा पुरुषने ५ यार त समाव, तथा “ एमेव"