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सुदर्शिनी टीका १० २ सू० ७-८ अन्येपामपि मृपाभाषणनिरूपणम्
तदसत्-कालन्यैव कर्तृत्वे कालमाप्तो स्त्रीश्मश्रुवन्ध्या पुत्रस्ततल्केगादीनामपि मदार स्यात् , इत्यपि मतवादिनो मिथ्या जल्पन्ति । तथा 'उडिरससायगारपरा' माद्विरससातगौरवपरा , 'हवे' वहषः जने के करणालसाःकर्तव्याचरणालसाः अनुद्योगिन' 'वम्मपीसमएण' मरिमर्शनेन-धर्मविचारेण 'मोस' पृपा-असत्य रस्तु अधर्ममपि धर्ममेव 'पति' प्रम्पयन्ति-मतिपादयन्ति ॥७
अन्येऽपि जना पथा मृपा भापगपरा भान्ति तत्मरूपपति भवरे' इत्यादि__ मूलम्-अवरे अहम्माओ राय? अभक्खाण भणति अलियचोरोत्ति अचोरिय करेंत । डामरिओ त्ति वि य एमेव उदासीण । दुस्सीलोत्ति य परदार गच्छइत्ति मइलिति सीलकलिय । अयपि गुरुतप्पओ त्ति । अण्णे एमेव भणति ___ कालवादियों की यह मान्यता असत्यरूप इसलिये है कि काल को ही कर्त्ता मानने पर स्त्री जर तम्ण अवस्था सपन्न हो जाती है तो पुरुप की तरह उसके भी दाढी मृग का आना, तथा वध्या के पुत्र होना, हथेली में बाल उगना आदि भी होना चाहिये परन्तु यह सर कुछ नहीं होता है । इसलिये ये पूर्वोक्त सर ही याद मिथ्या प्ररूपणा करते है ऐसा जानना चाहिये । (एव) इस प्रकार (केड ) कितनेक (कर‘णालसा) अपने कर्तव्य करने पर योग्य आचरण ने आलसी बने हुए,
और (इडिरससायगारचपरा) ऋद्वि, रम, सातगौरव में तत्पर रहे हुए, (यह वे ) अनेक अनुद्योगी व्यक्ति (धम्म वीमसएण) धर्म के विचार से (मोस) मृपा-असत्य-अधर्म को भी धर्मरूप से (परूवेति) प्ररूपित करते हैं। सू-७॥ - શાવિત છે ટાળવાદીઓની તે માન્યતા અગત્યરૂપ તે ટાણે છે કે વાળને જ જે કર્તા માનવામા આવે તે સ્ત્રી જ્યારે તરુણ અવસ્થાએ પહોંચે ત્યારે તેને પણ પુરુષની જેમ દાઢી મૂછ આવવી જોઈએ, તથા વ વ્યાને પુત્ર થ જોઈએ, હવેલીમાં બાલ ડગવા જોઈએ, પણ તેમાનુ કઈ પણ બનતુ થી તેથી પૂર્વોક્ત से था पाई मिथ्या ३५ उरे छे गेम भान नस, "ए" से प्रभारे “के” उटसार " करणालसा" पोताना तव्य पासनमा मासु थाने भने “ इढिरससायगारपपरा" द्धि, २८ भने सात मनिभानमा रत या " हवे" भने अनुयो all "चम्मवीमसण्ण" मना स्यालथी "मोस' भूषा-असत्य-मयभन धर्म३३ “प्ररूवे ति' ५३पित ४२ छ ।सू-७॥