________________
-
-
ELEELPEEEEEEEE
१९२
प्रभज्याकणसरे विवक्षिताः स्न्नुि शमदमादेस्तुत्वामान तस्यानुष्ठानता ऋपिस्वमिदिः । नेद सत्य, शास्त्राध्ययनशिष्यशिक्षापरम्पराऽनादिममाहस्याईदायभारे उन्छेद प्रसगात् । 'धम्माधम्मफल वि' धर्माधर्मफरमपि = देवठोकनरकादिमाप्तिलक्षणं किश्चित् 'यहुय' पारम् अधिक 'थोरया' स्तोरमल्प नास्ति, धर्माधर्मयो
प्रत्यक्षत्वेन वस्तुत्वामागत् 'तम्हा' तस्मात् न किमपि मुझतादिकमिति एवं 'जाणिऊण' ज्ञात्वा 'जहा' यथा येन केनापि मकारेण मुबह-अत्यन्तम् 'इदियाणुकूलेसु' इन्द्रियानुकूलेपु-श्रीगादीन्द्रियमियेपु ' सबपिमएम' सर्पविषयेषुणभूत व्यक्ति ही ऋपि कहलाते हैं, किन्तु शम, दम आदि ही जय वस्तु भूत-वास्तविक-नहीं है तो फिर इनके अनुष्ठान करने वलो में ऋपित्व की सिद्धि कैसे हो सकती है-मृपावादरूप ही है-सत्य नहीं है, कारणशानाध्ययन, शिष्यशिक्षा आदि का जो यह अनादिकाल से परम्परारूप से प्रवाह चला आ रहा है पर यदि तीयकर आदि न हुए रोते तो उच्छेद को प्राप्त हो जाता। इसी तरह से (धम्माधम्म फल विन अस्थि रिचिवय वा थोव वा) जो और यह कि-"धर्मका फल स्वर्गादि की प्राप्ति और अधर्म का फल नरक आदि की प्राप्ति होना यह न थोड़े रूप में है और न बहुत रूप में है, क्यों कि धर्म और अधर्म ये अप्रत्यक्षभूत है अतः इनमें वस्तुतः-अर्थ क्रिया कारित्व का अभाव है । (तम्हा) इसलिये जय पुण्यपाप आदि कोई वस्तुभूत पदार्थ है ही तर ( एव जाणिऊण) ऐसा समझकर (जहा ) जिस किसी भी तरह से (सुबह इंदियाणुकलेसु) इन्द्रियो को अत्यन्त प्रिय लगने वामे (सविसएस) કહેવાય છે, પણ શમ, દમ આદિ જ જે વાસ્તવિક ન હોય તે તેનું અનું ઠાન કરનારમાં વિત્વની સિદ્ધિ કેવી રીતે સંભવી શકે છે–એ તો મૃષાવાદ રૂપ જ છે–સત્ય નથી, કારણ કે શાસ્ત્રાધ્યયન, શિષ્યશિક્ષા આદિને જે પ્રવાહ અનાદિકાળથી પરપરા રૂપે ચાલ્યો આવે છે તે જે તીર્થકર આદિ થયા ન डात तो अच्छे-नाश पाभ्यो डात मे प्रमाणे “धम्माधम्मफल विन अस्थि किचि-बहुय वा थोव वा" जी ॥ ५॥२नी मान्यता है " धनु ફળ સ્વર્ગાદિની પ્રાપ્તિ અને અધર્મનું ફળ નરકાદિથી પ્રાપ્તિ તે ચેડા કે વધારે પ્રમાણમાં અસ્તિત્વ ધરાવતું નથી, કારણ કે ધર્મ અને અધર્મ અપ્રત્યક્ષભૂત छ तथा तमनामा पस्तुत्व-र्थ लिया रिस्पना मना छ " तम्हा" तेथी a पुन्य५५ मा6ि 18 वस्तुभूत यहा छ १ नहीं " एव जाणिऊण" से समलने ' जहा " आई पY प्रारे " सुबहु इदियाणुकूलेसु" धन्द्रियोन मत्यन्त प्रिय लागे तेवा " सव्वविसएसु" शाह सपा विषयमा