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प्रश्नध्याकरण हे वायजोगजुत्तं, पच य खंधे भणंति केड, मणं मण जीविका वदंति, वाऊजीवो त्ति एवमाहंसु सरीर साइयं सनिधणं इह भवे एगभवे, तस्स विप्पणासंमि सव्वनासो त्ति एव जपंति मुसाबाई ॥ सू० ४ ॥
टीका-'अपरे' अपरे-उक्तेभ्योऽन्ये ' नत्यिगयाइणो' नास्तिकवादिना 'नास्ति परलोकः' इति मतिर्येपा ते नास्तिका स्ते च ते गादिनः प्रत्यक्षप्रमाण नादिनचार्वाकाः, तथा वामलोगवाई ' तया पामलोकवादिनः, वाम=विरुद्ध लोक-बदन्ति ये ते तथा सतामपि लोकवस्तूनामसच प्रतिपादका गून्य वादिनः इत्यर्थः, ते हि 'भणन्तिम्बदन्ति यत् 'नस्थि जीरो' नास्ति जीवः मुखदुःखादि भोक्ता तत्साधक प्रमाणाभागात, यतो हि न तन प्रत्यक्ष प्रमाणमुपक्रमते चमुरादी न्द्रियविषयत्वात्, नाप्यनुमान तर प्रमाणम् , तस्य व्यामिपक्षधर्मताज्ञानायधीनतया
तथा-'अवरे नत्थिगवाहणो' इत्यादि
टीकार्थ-(अवरे ) इन पूर्वोक्त व्यक्तियों से भिन्न (नस्थिगवाइणो) जो नास्तिकवादी हैं-' परलोक नही है । इस प्रकार की जिनकी बुद्धि है ऐसे केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानने वाले चार्वाक, तथा (वामलोगवाई) घामलोकवादी-शन्यवादी, ये लोक में रही हुई वस्तुओ को असत्रूप से प्रदिपादित करते हैं वे (भणति ) कहते है कि (नस्थिजीव) सुख, दुःख आदि अवस्थाओं का भोक्ता जीव नाम का कोई पदार्थ नहीं है, कारण कि इसके साधक प्रमाणों का अभाव है प्रत्यक्षप्रमाण इसका साधक इसलिये नही होता है कि चक्षुरादिक जो इन्द्रिया है वे उसे अपना विषयभूत नही बनाती है। अनुमान से भी उसका ग्रहण नहीं होता है, क्यों कि अनुमान से साध्य और साधन की व्याप्ति का एव पक्ष
तथा-“अवरे नथिगवाइणो" त्या
टी -"अवरे' ते पूति व्यक्तियोया हा प्रा२ना 'नथिगवाइणो" જે નાસ્તિકવાદી છે-પરલેક નથી” એ પ્રકારની જેમની માન્યતા છે એવા, श्त से प्रत्यक्ष प्रभागने ४ भाननार यावाडी, तथा " वामलोगवाई " વામલોકવાદી–વામમાગી, તેઓ સહિમા રહેલ વસ્તુઓને અસત રૂપે પ્રતિપા हित ४२ छ तेसो भणति" ४ " नत्थि जीवो" सुम म माहि અવસ્થાઓને જોક્તા જીવ નામને કઈ પદાર્થ નથી, કારણ કે તે સિદ્ધ કરવા માટેના પ્રમાણેને અભાવ છે પ્રત્યક્ષ પ્રમાણ તેનું સાધક તે કારણે હતુ નથી કે ચક્ષ આદિ જે ઈન્દ્રિયો છે તે તેને પોતાના વિષય રૂપ બનાવી શકતી નથી અનુમાનથી તેને ગ્રહણ કરી શકાતું નથી કારણ કે અનુમાનમાં સાધ્ય