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मुदर्शिनीटीफा म १ सू ४६ मनुष्यभवदु ननिरूपणम्
१५३ थम् , 'विरुयरिंगलस्ना' विकृत किररूपाः = विकृत-पीभत्स निकल-हीन च रूपा-आकारो येषा ते तथा भृता 'टीमति' दृश्यन्ते दृष्टिगोचरा भवन्ति । तदेव वर्ण्यते-'युज्जा' कुन्नाः 'कृण्डा' इति भापा प्रसिद्धाः, 'चडमा' एक पार्थहीनाः = कोपरिसायाः, यद्वा-विकृतरूपेण नहिनिस्सृतहृदयौदरमागाः, 'वामणा' वामना: सिकायाः 'हिरा' पपिराम् श्रवणशक्तिहीनाः 'काणा' पाणा एकाक्षाः ‘कुटा' कुण्टाः विकृतहस्ताः 'ढा' इति प्रमिद्धाः 'पगुला' 'पगना नवाहीना 'पागला' इति प्रसिद्धा', 'रिंगला' विक्ला. = हीनाङ्गोपाहाः 'मूना' मुकाः पचनशक्तिहीनाः, 'ममणा' मन्मनास्सलद्वचनाः, 'अध. यगा' अन्धकाः जन्मान्धा , 'चक्युरिणिहया' चक्षुपिनिहता =विनिहतचक्षुपः= हैं (विकय विगलस्वा दीसति ) उनका रूप विकृत और विकल-हीन होता है । इसी बात को विशेपरूप से सूत्रकार समझाते हैं (खुज्जा) उनके शरीर में पीठ पर कुबड निकली रहती है। (वडभा) वे एक पार्श्वसे हीन होते है, अथवा उनके हृदय और उदरका भाग विकृतरूप से बाहिर निकला हुआ रहता है । (वामणा ) शरीर उनका योना होता है। (पहिरा) उनकी श्रवणशक्ति नष्ट हो जाती है ( काणा) वे आखें से काने होते है। ( कुटा) हाथ उनका एक ठीक रहता है दूसरा टूट जाता है इससे वे टूटा कहलाते है, (पगुला) पागले-जधाहीन (विगसाप ) अग और उपांगों से वे विहीन होते है, (मया ) भूगे होते हैवचनशक्ति से वीहीन होते है, (मम्मणा) मम्मण होते हे-बोलते समय वे अटकते है ( अधयगा ) जन्माध होते है-उनकी जन्मतः दोनों आखे फटी रहती है, (चक्खुविणिया) वक्खुविनिहत होते है-उनकी विगलरूवा दीसति " तेभनु ३५ विकृत भने विस-डीन डाय ७ मे पातने सूत्र विस्तारथी सभात छ“ खुजा" तभना शरी२ पाठ ५२ भूध नीजी हाय छ, “वडभा" तसा पणे मोउवा डाय, मथवा तेभना हय भने पेटने मारा विकृतीत मा ५तो डाय छ “वामणा" तेस। पामन३५ हज हाय ), " वहिरा" भनी श्रवण सहित ना५ पामे छ-तेमे पडे। थाय ' काणा" तेगा मामे आए। 1य “कुटा" તેમને એક હાથ સારે હોય છે પણ બીજો હાથ તૂટી જવાને કારણે તેઓ इस उपाय " पगुला" ५७-५गे सूसा “ विगला य" 241 मने 64जानी वाणा हाय छ, “ मृया" भृजना डाय छ-मासवानी शति विनाना सय छ “ मम्मणा" तोता डोय छे-गसता CHA23 ते खाय