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प्रश्नव्याकरण घोरा-विकटा-याणेऽपि दुःखजनकत्वात् , भीपणा-भयोत्पादिका-प्रतिप्राणिभयजनकत्वात् दारुणा-हृदयसंक्षोभकारिणी प्रतिकाररहितत्वात् , तथा-भूतया वेदनया पापिनो दुःखमनुभवन्तीति सम्बन्धः 'किते ' कानि तानि दुःखानि? तान्यग्रेऽनुपदे वर्णयिष्यते ।। सू०२५ ॥ ___अथ तान्येव दुःखानि वर्णयति-कदु महाकुम्भीए' इत्यादि ।
मूलम्-कदुमहाकुंभीए पयण-पउलण-तवग-तलण-भटू भजणाणि य लोहकडाहकडणाणि य कोवलिकरणकोट्टणाणिय सामलि तिक्खग्ग-लोहकटग-अभिसारणा पसारणाणि, फालण विदारणाणि यअवकोडकवधणाणि, लट्रिसयतालणाणि य,गलग वल्लुल्लंबणाणियसूलग्गभेयणाणि य, आएसपवचणाणि यखिंसणावमाणणाणि य विघुट्रपणिजणाणियवज्जसयमाइयाणिया॥२६॥
टीका-'कदुमहाकुभीए' कन्दुमहाशम्भ्योः कन्दुः लोहमयविशालपात्र प्रति प्रदेश में व्यापक होने से प्रचण्ड-भयानक होती है, घोर-मुनने में भी दुःखजक होने से विकट होती है, (घीणग) हरएक प्राणी में भय की सचारक होने से भीषण-भयोत्पादिका होती है, (दारुणाए) इसको वहा कोई इलाज नही होता है इसलिये यह हृदय को सक्षोभकारिणी होने से दारूण होती है। इस प्रकारकी वेदना से पापी जीव नरकों में दुःखों का अनुभव करते हैं । (किंते) वे दुःख कौन कौन से हैं वह इसी के अगले सत्र मे कहेंगे॥ २५॥
अय सूत्रकार " किंते " इन पदो द्वारा सूचित दुःखों को कहते हैंमात्माना ४२४ प्रदेशमा व्यापेक्षा पाथी प्रय3 लयान सय छ, घोरसालयता पए मन पाथी विट खाय छ, “बीहणग" ४२४ प्रामा लयनः सयार ४२ना२ लापाथी लीप-सय ४२ डाय छ, “ दारुणाए " तेना ત્યા કઈ ઈલાજ હોતો નથી, તેથી તે હદયમા ક્ષોભ ઉત્પન્ન કરનાર લેવાથી દારુણ હોય છે આ પ્રકારની વેદનાથી પાપી જીવ નરકમાં દુબેને અનુભવ ४२ छ “किते" ते ४या उया छ ते ९२ ५छीन सूत्रमा गतीવવામાં આવશે | સૂ ૨૫ II
वे सूत्रधार " किंते " | सूचित हुनु पन रे,