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प्रश्नध्याकरसूत्र उपसहरन्नाह-एर ते' इत्यादि ।
मूलम्-एव ते दुक्सलयसंपलित्ता नरगाओ आगया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्खपंचिंदिएसु पार्वति पावकारी कम्माई, पमायरागदोसबहुसंचियाइ अइव असायक कसाई ॥ सू०४०॥
टीका-एवम्-उक्तप्रभारः ते = जीना पाणातिपातकारकाः ' दुक्खसया सपलित्ता' दुःखशतसम्प्रदीप्ता दु खशतैः सम्मदीप्तासन्तप्ताः 'नरगाओ' नरकात् -इ-तिर्यग्लोके आगया जागता उत्पन्नाः 'सारसेसकम्मा' सावशेषकर्माण अवशिष्टपापकर्माणः 'पानकारी' पापारिण 'तिरिक्सपचिदिएमु' तिर्यक् पञ्चेन्द्रियेषु 'पमाय-रागदोसनहसचियाई' ममादरागद्वेपासञ्चितानिप्रमादाविपयाघभिप्वद्गलक्षणः, राग मायालोभलक्षणः, द्वैपाक्रोधमानलक्षणः, तैः बहूनि सञ्चितानि-उपार्जितानि 'अईव' अनी अत्यन्तम् 'असायकक्कसाइ' अशातकर्कशानि = अशातेपु-अशातवेदनीयकर्मोदयप्रभवेषु दुःखेषु कर्कशानिकठोराणि 'कम्माणि,' कर्माणि कर्मजन्यानि दुःखानि 'पाति' प्राप्नुवन्टि, __ अब उपसहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'एच ते' इत्यादि। टीकार्थ-(ण्य) इस प्रकार से (ते) वे प्राणातिपातकारक जीव (दुक्खस यसपलित्ता) सैकडों दुःखों से सन्तप्त होकर (नरगाओ) नरक से (इह ) इस तिर्यग्लोक में (आगया) उत्पन्न होते है और (सावसेसकम्मा ) पापकर्म उनका अवशेषरहने के कारण वे (तिरिक्ख पचिंदिएसु) तिर्यञ्च पचेन्द्रियों मे (पमाय - रागदोसबहुसचियाइ ) विषया धभिष्वङ्गरूप प्रमाद से मायालोभरूप राग से और क्रोधमानरूप द्वेष से उपार्जित किये गये (अईव असाय कक्कसाइ कम्माइ) अशात कर्कश कर्मो
व पसा२ ४२॥ सूत्र२ उछे-"एव ते" त्यादि
टी -"एव" मा प्रमाणे "ते" प्रावध ४२ना२ ~ "दुक्खसयसपलित्ता" से माथी भी थने “ नरगाओ" नमाथी " इह " मा तिमा “आगया" Gत्पन्न थाय छ भने “सावसेसकम्मा" तेमना पा५४
माडी २२ डापायी तो "तिरिक्खपचिदिएसु" ति य ५२न्द्रयोमा “पमाय रोगदोसपहसचियाइ " विषयाहिनी मलिदा ३५ प्रभाथी, भाया बाम ३५ शायी, मन अपमान ३५ द्वेषयी ललित ४रे " अईत्र असाय कक्कसाइ फरमाई" All ४४ भनि, मशात वहनीय हयने १२थे 6cd