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सुदर्शनी टीका १०१ सू० ३६ परस्परवेदनोदीरणाया नारफदशावर्णनम् १२५ 'सुणग' वानः 'मियाल 'शगालाः, कामगा प्रसिद्धा ‘मनार' मानारा = पिडालाः, शरभाः अष्टापदा 'दीरिय' द्वीपिका-चिनकाः 'नियम' व्याजाः मसिद्धाः, 'सकूल' शाईलाः च्याविशेषाः, 'सीह ' मिहा: केसरिणः, ते च कादयः कीदृशाः ? ' दप्पिय ' दर्पिता गर्विताः, तथा 'सुहाभिभूया' क्षुधा. भिभूता क्षुधापिपासाव्यालास्तैः णिच्चकाल ' नित्यकालसर्पदा 'अणमिएहिं ' अनगितैः अभुक्तः 'घोरारसमाण भीमरूवेहि घोराऽऽरममानभीमरूपैः= घोरा भयकरकर्माण जारसमाना: अतीवाकोगन्तोभीमरूपा भयानकाकृतयश्च ये ते तथा तैः 'अकमित्ता' आक्रम्य आक्रमण कृत्वा 'दृढदाढागाढडप कड़ियअतिक्खनहफालिय उद्धदेहा' दृढदप्ट्रा गाढदप्कर्पित-मुतीक्ष्णनखपाटितीर्ष
सरभ-दीविय-वियग्व-मडूल-मीह-दप्पिय-खुताभिभूपहिं ) (दप्पिय ) दर्पित-गर्वित तथा (खुहाभिभूहिं) भूख प्यास से अत्यत व्याकुल तथा (णिचकालमणसिएहिं ) उस समय जिन्ही ने निरकुल कुछ भी नहीं खाया होता है ऐसे, और इसी कारण जो (घोरारसमाणभीमस्वेहिं) घोर-ऋर कर्म करने के लिये तत्पर बन चुके है, अतः चीत्कार करने से भीमरूप जिनका रूप भयकर बन रहा है ऐसे (विग) वृक-भेडिया, (सुणग ) श्वान-कुने, (सियाल) श्रृगाल-गीदड़ (काक) कौवे, (मज्जार) मार्जार-विलान, (सरभ) अप्टापद, (दीविय) दीपिक-चिता, (वियग्य ) व्याघ्र, (सहल ) शार्दल-व्याघ्र विशेप, और, सिंह इनके द्वारा (अवमित्ता) आक्रमण करके (दृढदाढा-गाढडक-कड्डिय-सुतिक्ख नहफालिय उद्धदेहा ) पहिले दृढदंष्ट्राओं से उसे जाते है, पश्चात् पृथ्वीवियग्ध-सदल-सीह-दप्पिय-सुहाभिभूएहि" “दप्पिय " हर्षित-गवि तथा " बुहाभिभूएहि " भूम यासथी-अत्यत याgn तथा "णिच्चकालमणसिपहि" ते जाणे भन मास मरा४ भन्या हाती नथी मेवा मने मेर ०२ "घोरारसमाणभीमरूपेहि " धार-१२ म ४२वाने भाटे मातुर थयेस છે, તે કારણે ચિત્કાર કરવાથી જેમનો દેખાવ અતિ ભયકર બની ગયેલ છે सेवा " विग" १४-१२, 'सुणग" श्वान-तस, 'सियाल" शियाण, "काक" जागा, “ मज्नार" मानक मिसास, सस माप, “दीविय" दीपि यत्ता, “ वियग्ध" वाध, “ सद्दल " ई-वजिट जाना पाप अने सिंह पोरे प्राणिमा “ अफमित्ता" याभा की “ ढदाढा-गाढडक-कड्ढिय-सुति क्स-नहफालिय उद्धदेहा" पता भाभूत ! 43 तेभने म मरे छ,