________________
११२
terriकरणसूत्रे
प्रघातैः चूर्णितः = कुट्टितः, मुसण्टिभिः = शस्त्रविशेपैः सभग्नः = नर्जरीकृतः, मयि= कुम्भ्यादौ - दधिवद् विलोडितः देहो येषा ते तथा, ' जवोनपीलणफुरंत - कप्पिया' यन्त्रोपपीडन स्फुरत्कल्पिताः = यन्त्रेषु उपपीडनेन = सम्मर्द्दनेन स्फुरन्तः वेपमाना कल्पिताः = कर्त्तिता ये ते तथा 'केइत्थ ' केचिदन - केचित् नारकाः अत्र= नरकेषु ' सचम्मगा ' सचर्मका = चर्मसहिताः ' विगत्ता ' विकृत्ताः उदिताः मृत पशुवद् उत्पाटितचर्मशरीराः, निम्मृलुल्लूणियकष्णोहणासिया निर्मूलोल्लूनकर्णोष्ठनासिकाः = निर्मूल= मूलतः उल्लूनाः = कर्तिताः कर्णो ओष्ठौ नासिका च येषा ते तथा, 'छिणहत्थपाया छिन्नहस्तपादाः = छिना हस्ताः पादा येषां ते तथा भूता नारका भवन्ति ॥ सू० ३४ ॥
3
अपि च-- '
तत्थ य असि ' इत्यादि -
मूलम् - तत्थ य असि करकय तिक्खकत- परस्सुप्पहार फालिय- वासीसतच्छियगमगा कलकलमाणखारपरिसित्तगाढहैं ? इस बात को सूत्रकार कहते है - ' तत्थ ये मोग्गर इत्यादि । टीकार्थ- (मोग्गरपहारचुण्णिय-मुसढि सभग्ग-महिय देहा) उन नरकों में मुद्गरों के प्रहारों से चूर्णित, मुसदि जाति के शस्त्रविशेषों से जर्जरीकृत एव कुभी आदि में दही की तरह मधित है देह जिन्हों की ऐसे ( केइत्थ) कितनेक नारकी नरको मे (जतोवपीलण फुरतकप्पिया ) यत्रों में समदन से कपित होते हुए काट दिये जाते हैं । ( सचम्मणाविगत्ता ) इनके शरीर के उपर की चमडी मृतपशु की चमडी की तरह उसाड ली जाती है। (णिम्मृलुल्लूणियकण्णोदृणासिया ) मूलतः इनके ओष्ठ और नाक काट ली जाती हैं । (छिन्न हत्थपाया ) हाथ पैर छिन्न भिन्न कर दिये जाते हैं | सू ३४ ॥
लय छे, ते वात सूत्रभर हवे मतावे छे " तत्थ मोग्गर " ઇત્યાદિ " मोगर पहार चुण्णिय, मुसढि सभा-महिय देहा ” તે નરકામા મગાળાના પ્રહારાથી ચૂર્ણિત, ક્રુસઢિ નામના શસ્ત્રથી જર્જરિત કરેલ અને કુ ભી આદિમા हड्डींनी प्रेम प्रेमना शरीर वसोवाय छे तेवा " केइत्थ " डेटला नारडीओने નરકામા " "जतोवपीलण फुर तकप्पिया " यत्रोभा थीसवानी भी पता होय तेवी हासतभा अभी नाभवामा आवे छे " सचम्मणा विगत्ता " तेभना शरीर परनी याभडी भृतपशुनी ग्राभडीनी प्रेम उतारी सेवाभा भावे छे " णिम्मूल स्लूणिय कण्णोदृणासिया " तेमना होड, नाइ भने अन भूणभाथी अभी सेवाभा भावे छे " छिन्नहत्य पाया " हाथ अने या छिन्नभिन्न कुवामा आवे छे ॥ ३४ ॥