________________
-
-
सुशिंनी टीका अ १ सू० ३. तिर्यग्गतिदु रानिरूपणम् खचराणां परस्परं निहिंसनस्य अनेकप्रकारवधस्य प्रपञ्चो विस्तारो यस्या सा ता तथा, सम्भूता तिर्यग्योनि गन्छन्तीति पूर्वेण सम्बन्ध ॥ मू० ३७ ॥
अब तिर्यग्गति दुःख वर्णयन्नाह-'इम च ' इत्यादि।
मूलम्-इम च जगपागड वरागा दुक्ख पार्वति दीहकाल। किं ते ' सीउण्ह-तपहा खुह-यण - अप्पईयार-अडविजम्मण-णिच्चभउविग्गवास-जग्गण--वह-बधण--ताडणंकण निवायण-अट्ठिभजण-नासा-भेय-प्पहार दमण-छविच्छयण अभिओगपावण-फसकुसारानवाय-दमणाणि वाहणाणि य॥सू०३८॥ ____टीका-'इम च ' इद च = अनुपदवक्ष्यमाण 'जगपागड' जगत्मकट = सरललोकमत्यक्ष, दुःखम् = अशातवेदनीय - लक्षण 'दीहकाल' दीर्घकालम् । असख्यातकारपर्यन्त 'पाति' प्राप्नुवन्ति, 'कि ते 'कानि तानि दुःखानि ? तदाह-सीउण्ह' इत्यादि-' सीउण्डतहासुहवेयण' शीतोष्णतृष्णा क्षुधा वेदना = शीतोष्णतृष्णा क्षुधाजनित दुःख, तथा 'अप्पईयारअडविजम्मण' जिस में परस्पर जलचर, स्थलचर और खेंचरों के विविध प्रकार के वध का प्रपञ्च-विस्तार है, ऐमी तिर्यञ्चयोनि को प्राप्त करते हैं |स० ३७॥ अय सूत्रकार तियंचगतिके दुःखोंका वर्णन करते हैं-'इमचजगपागड'इत्या.
टीकार्थ-(इम च जगपागड) (इम) अनुपद् वक्ष्यमाण यह (जगपागड) सकल लोकों के प्रत्यक्ष ऐसे (दुरव ) दुःख को (वरागा) वे तिर्यचगति के जीव (दीदकाल) अनतकालपर्यन्त (पावेंति ) भोगते हैं (किं ते ) वे दुःखों के प्रकार कौन २ से हैं ? सो कहते है-उस गति में दुःखों के ये २ प्रकार है-(सीउण्ह ) शीत-जनित दुःख, उष्णजनित दुःख, (तण्डा ) पिपासाजनितदुःख और (खुद) क्षुधाजनितदुःख, तथा ચર, અને નભચરેના વિવિધ પ્રકારના વધને પ્રપચ-વિસ્તાર છે એવી તિર્થ ચ यानिन तेस प्रास उरे छे ॥ २-३७ ॥ वे सूत्रातिय य गतिना मानुन छ "इम च जगपागड" त्याla
टी "-इम च जगपागड " "इम" नीय प्रमाणुना "जगपागड " सघा खोजीनी नगरे ५ तेवा " दुस्स" मा “वरागा" ते मिया। तिय श्य गतिना ! “दीहकाल " मनताजसुधी " पावेंति' मागवे छ “कि वे ?', તે દુના પ્રકાર ક્યા કયા છે? સૂત્રકાર તેને જવ બ આપતા કહે છે તે शतिभा नाय प्रमाणे खाय , " सीउण्ह " शीत नितम, BY
- -... " ----- " पिपासालनित हु भने “खुह" क्षुधाजनित