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सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २९ यमा नारयान् प्रति किं फुपन्ति' १०९ निर्दयः-दयारहित , ' असि' भासि ?, मा देहि 'मे' मा 'पहार' प्रहारान् मा मा ताडयेत्यर्थः । 'अस्सासेउ' उझसितु-वासमात्र ग्रहीतु 'मे' मा 'मुडुत्त' मुहूर्त क्षणमात्र देहि, येन श्वासमानमपि मुसमनुभनामीति भावः, 'पसाय' मसादम्-अनुग्रह 'करेह ' उम्त 'मा रसद' मा रुप्यत-क्रोध मा कुरुत । वीसमामि विश्रमामि-किञ्चित्काल विश्राम करोमि अतः 'मे' मम 'गेविज्ज' अवेयक-ग्रीवास्न्धन 'मुयह ' मुश्चत-त्यजत यतो हि-जह 'मरामि' म्रिये, गाह अत्यधिक 'तण्डाइओ' तृष्णार्दितः पिपासाकुलितोऽस्मि मे मा 'पाणिय' पानीय नल देहि ।। मृ० २८॥ एव नारकैः कथिते सति यमपुरुषाः यत् कुन्ति तदाह-'ताहे त' इत्यादि ।
मूलम्-ताहे त पिय इम जलं विमल सीयलति घेत्तूण य नरयपाला तवियं तउयं से दिति कलसेण अंजलीसु दह्रण य त पवेवियगोवगाअंसुपगल तपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हा इयम्ह कलणाणि जपमाणा विपेक्खता दिसोदिसि अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा वधुविप्पहीणा विपलायति य मियविववेगेण भउब्विग्गा, घेत्तण वला पलायमाणाणं निरणकपामुह विहाडेउं लोहदंडेहि कलकलण्ह वयणसि छुभति केइ जमकाइया हसता॥२९ ___ कठोर और निर्दय हो रहे हो, (मा देहि मे पहारे) मुझ पर प्रहार मत
करो (अस्सासेउ मुहत्त मे देहि ) मुझे कम से कम मुहूर्त-क्षण मात्र भ्वास तो लेने दो, (पसाय करेह) मेरे ऊपर दया करो, (मा रुसह) मुझ पर शोध मत करो, (वीसमामि) में कुछ कालतक विश्राम करना चाहता हु-अत (गेविन मुयह मे ) मेरी ग्रीवा के बंधन को तुम छोड दो, देखो (गाढ तण्डाइओ अह ) गहरी प्यास से व्याकुल होकर मै मर रहा है अतः मेरे लिये ( देहि पाणिय ) पीने को जल दो ॥ २८॥ भनी हा छ। १ ‘मा देहि मे पहारे" भा२१ ५२ प्रडा न ४। “अस्सासेउ मुहुत्त मे देहि " भने माछामा माछी से क्षण माटे तो पास हो "पसाय करेह " भा। ५२ या उौ, "मा रुसह" भारा ५२ अधन ४२, " वीसमामि" यो समय विश्राम ७२। भार छु तो “गेनिज्ज मुयह मे" भारी भानु धन तमे हो, नुवो “ गाढ तहाइओ अह" सारे तृपाथी व्याण यधन हु भी रह्यो छु तो भने "देहि पाणिय" पावाने માટે જળ આપો” | સૂ ૨૮