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प्रश्नव्याकरण टीका-यदि व पिपासितः 'ताहे ' तदा 'त' व 'इम' इदं 'विमलं' निर्मल ' सीयल ' शीतल जल ‘पिय ' पित्र, इति कथयिता नरयपाला' नरकपालाम्=परमाधार्मिका 'तनिय' तापितम्-उत्कालित 'तउय' पुक कथीर' इति प्रसिद्ध सीसफ बा, 'कलसेण' कलशेनघटेन 'से' तस्मै नारकाय 'अ जलीस य' अञ्जलिपु च 'दिति ' ददति । 'त' तत्-तापित पु 'दद्रूण' दृष्ट्वा अवलोक्य 'पवेचियगोवगा' मवेपितागोपाला अर्पण वेपितानि कम्मि वानि अङ्गानि उपाङ्गानि च येपा ते तथाकम्पितसर्वशरीराः 'अम-पगल-तपप्पुयच्छा' प्रगल्दश्रुमप्लुताक्षा: भगलद्भिः अश्रुभिः प्रप्लुते व्याप्ते अक्षिणीनयने येपा ते तथा, प्रक्षरत्मालाश्रुधाराः सन्त 'अम्ह । अस्माक ' तण्डा' तृष्णा 'छिण्णा' छिन्ना-नष्टा ' इय' इति एवमुस्त्या 'कलुणाणि' करुणानि ___ इस प्रकार नारक जीवों के कहने पर परमाधार्मिक जो कुछ उनके साथ करते हैं वह सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-'ताहे' इत्यादि ।
टीकाथ-(ताहे त) यदि तुम पिपासित हो तो (इम ) इस (विमल) निर्मल ( सीयल) शीतल (जल) जल को (पिय) पिओ ऐसा कह कर (नरयपाला) वे नरकपाल परमाधार्मिक देव (तविय ) उचाले हुए कथीर को अथवा सीसे को (कलसेण) कलश मे भरकर (से) उस नारकी के लिये ( अजलीसु) अजलि में (दिति ) देते हैं। (त) उस तपे-हुए-त्रपु-सीसे-को (दहळूण य) देखकर (पवेवियगोवगा.) उननारकियो का समस्त शरीर-अग-उपाग बहुत अधिक रूप में कपने लगते है। और ( असुपगलतपप्पुयच्छा ) उसी स्थिति मे वे निकलते हुए आसुओं से अपनी आखो को व्याप्त करके उनसे कहते है कि (छिपणा तण्हा अम्द ) अब हमारी प्यास शात हो गई है (इय)-इस
નારકી જેના એ પ્રકારના શબ્દ સાંભળીને પરમાધમ તેમની સાથે वो वाव रे छे ते सूत्रा२ मताछ- 'ताहे" त्यादि
साथ-"ताहेत"नतमन तरस दायतो "इम" " विमल" निभ, "सीयल" शीत "जल' पी "पिय" पाव। सभ डीन "नर-- थपाला" ते न२४पास ५२भाधामि । "तविय" माणेस १२म थोर अथवा सीसाने "कल्सेण' ४५शमा मरीन 'से" तानाश्रीन "अजलीसु" 40 लिमा दिति" मा छ "त" ते गरमा २५ धु-सीसाने दहाण य"
न. "पवेवियगोवगा" ते नासीमाना मा सत्यत at खाणे छ "अपगलत पप्पुयच्छा" ते स्थितिमा मासुमरी मातेसा तभ२ 8
"छिण्णा तण्डा अम्ह" व भारी तृषा शत छ ।