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प्रश्नण्याकरण 'फलण' करुण-यथास्यात्तथा दीनदशामाश्रित्येत्यर्थः, 'पाले ति ' पालयन्ति प्रतीक्षन्ते 'पदा ममाय दुःखकालः पूर्णो भविग्यती 'ति प्रतीक्षमाणा नरकजीवाः फाल यापयन्तीत्यर्थः ॥ सु० २७ ॥ ते पुनः कि कुर्वन्ती ? त्याह
मूलम्-ते अहाउय जमकाइयतासिया यसद करेंति भीया, किते ' अवि-भाय । सामि | भाय । बप्प | ताव | जितव । मुय मे मरामि दुव्वलो वाहिपीलिओ ह किं इदाणि असि, एवं दारुणो णिहओ य मा देहि मे पहारे, अस्सासेउ मुहुत्त मे देहि, पसायं करेह, मा रुसह वीसमामि गेविज मुयह मे, मरामि, गाढं तण्हाइओ अह, देहि पाणिय ॥ सू० २८ ॥
टीका-ते पूर्वोक्ताः पापकर्माण 'अहाउय' यथायुष्षम्ययानद्धायुष्कर पूर्वभव यावत्कालपरिमितमायुद्धमासीत्तावत्परिमित न तु न्यूनाधिक देवनारकाकी वेदना वे बहुत से पस्योपम तथा सागरोपमप्रमाण कालनक (कळण) करुणदशा से, (पालेंति) भोगते है । उस समय उनकी बड़ी दीनदशा रहती है। और वे इस बात की प्रतीक्षा में उस असह्य पीडाको भोगत हुए कहा करते है कि " कर यह हमारा दुःखकाल समाप्त हो" । इस तरह विचारे वे पापी जीव वहा से निकलने के समय की प्रतिक्षा करते हुए काल को व्यतीत करते रहते हैं ॥ २७॥
और वे क्या करते है ? सो सूत्रकार कहते है-'तेअदाउय' इत्यादि। टीकार्थ-देव और नारकियों आदिकी आयु निरुपक्रम होती है-बीच में छिदती भिदती नहीं हैं, तीव्र शस्त्र, तीव्र विष, तीव्र अग्नि आदिजिन प्रभा ज संधी “कलुण" न शामा “पालति" लोग छ त સમયે તેમની ઘણું દીનદરા હોય છે અને ત્યારે અમારે આ દુ અને સમય પૂરો થાય” એ વાતની રાહ એ અસહ્ય પીડા ભોગવતા ભેગવતા તેઓ જોયા કરે છે. આ રીતે બિચારા પાપી જીવો ત્યાંથી નીકળવાના સમયની રાહ જોતા જોતા સમય પસાર કરે છે | સૂ ર૭
अने तमा शुरे छते सूत्र४९२ मता छ-'ते अहाउय" त्यादि દેવ અને નારકીઓ આદિનું આયુષ્ય નિરુપક્રમ હોય છે-તે વચ્ચે અકસ્માતોથી છેટાનું ભેદાતુ નથી, તીવ્ર શસ્ત્ર, તીન વિષ, તીવ્ર અગ્નિ આદિ જે કારણથી