________________
७६
resurered
'तसपाणे' सप्राणान् = द्वीन्द्रियादीन् जीवान् ' थापरे य' स्थानरांश्च पृथिवीकायादीन् हिंसन्ति =नन्ति ॥ ०१९॥
उक्तार्थमेव विशदयन्नाह - 'मदबुद्धिया' इत्यादि ।
मूलम् - मंदबुद्धिया सहसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहओ हणंति, अट्ठा हणति, अणट्टा हणति, अट्टा अणहादुहओ हणंति, हस्सा हणंति, वेरा हणति, रती हणंति हस्सा वेरारती हति । कुद्धा हणति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धालुद्धा मुद्धा हणति, अत्था हणनि, धम्माहणंति, कामा हणंति, अत्था धम्माकामा हति ॥ सू० २० ॥
टीका--' मदबुद्धिया' मन्दबुद्धिका । मिथ्यात्वोदयात्तच्चातत्वविवेकरहितमतयः, 'सवसा' स्वनशा = स्वतन्त्राः सन्तः, स्वेच्छया 'हणति' घ्नन्ति, 'अवसा' अवशाः = पराधीना सन्तः घ्नन्ति, 'सवसा जनसा' स्ववशा अशा 'दुहओ' उभयतो अनर्थ - विना प्रयोजन के लिये (तसपाणे ) द्वीन्द्रियादिक त्रस प्राणियों की एव ( थावरे य) पृथिवीकायादिक एकेन्द्रिय स्थावर - प्राणियों की (हिंसति ) हिंसा करते हैं । सू० १९ ॥
इसी उक्त अर्थ को विस्तार से समजाने के लिये पुनः सूत्रकार कहते हैं---' मद बुद्धिया सवसा हणति ' इत्यादि ।
कर्थ - ( मदबुद्धिया) मिध्यात्व के उदय से तत्व और अतत्व के विवेक से जिनकी बुद्धि शून्य हो रही है ऐसे प्राणी (सवसा) स्वतन्त्र बनकर अपनी इच्छानुसार त्रस स्थावर जीवों की ( हणति ) हिंसा करते हैं । इसी तरह जो प्राणी (अवसा हह्णति ) नौकरी आदि के कारण पराधीन
'ध्यातर अथवा "अणट्टाए" विना प्रयोभने “तसपाणे" द्वीन्द्रिय साहि त्रस भवानी अने " थावरे य" पृथिवीआय आहि येडेन्द्रिय स्थावर भवानी " हिसति " हिंसा रे छे ॥ सू १८ ॥
એ જ ઉપરાસ્ત અને સવિસ્તર સમવવાને માટે સૂત્રકાર કહે છે-'मद्बुद्धिया सवसा हणति " त्याहि
66
टीअर्थ -“ मदबुद्धिया ” भिथ्यात्वनाउ हयथी नेभनी शुद्धि तत्त्व भने तत्त्वना विवेधी रहित थ ग छे सेवा वा "सबसा' स्वतंत्र होवा छता पशु पोतानी इच्छानुसार त्रस स्थावर लवोनी " इणति " हिंसा रे छे मे ४ પ્રમાણે જે માણુસ अवसा हणति " नारी वगेरेने
"6
गाधीन