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सु-शिंनी टीका अ १ सू० ५४ याटफरतकर्म तथाविधफलनिरूपणम् ९५ मस्तकशूलादय , जरा-वार्धक्य च, तेः पीडितेपु-व्याप्तेपु, 'अईपनिन्चधयारतमिस्सेस ' अतीवनित्यान्धकारतमिस्रपु=अतीय-अत्यन्त नित्यान्धकारेण तमि
पु-घोरान्धकारस्वरूप प्राप्तेपु, अतएव 'पइभएम' प्रतिभयेपु-प्रतिवस्तुभययुक्तेपु, ‘ववगयगहचदमूरणक्खत्तजोइसेसु' व्यपगतग्रहचन्द्रसूरनक्षत्रज्योतिप्केषु =ग्रहचन्द्रसूर्यनक्षत्रज्योतिप्कार्जितेपु, ' मेयरसामसपडल पोच्चडपूयरुहिरुक्किण्णरिलीणचिक्कणरसियारायण्णकुहियचिक्सल्लकदमेसु ' मेदोवसामासपटलपोन्चडपूयरुधिरोत्कीर्णविलीनचिक्कणरसिस्न्यापनकुथिवचिक्सलार्दमेपु-मेटः शरीरस्नेहविशेप , वसाची इति भाषा, मास-प्रसिद्ध तेपां यत्पटल-राशि: 'पोच्चड' गिलगिलायमान पूय= पीप' 'परू' इति प्रसिद्ध, रघिर-शोणित तेन उत्कीण व्याप्त विलीन-सभृत, चिकण-गुन्द्रवत् , 'रसिका' विकृतरुधिर व्यापन्न-निनष्टस्वरूपम् अतएप-शुयित-दुर्गन्धित 'चिक्खल ' शिथिलकर्दमः, पदमा धनकर्दमश्च येपु ते तथा तेषु । ' कुलानलपलित्तजालमुम्मुरअसिक्सुर अवस्था है इनकी पीडा यहा प्रतिकार-उपाय रहित होती है। (अईव णिचधयारतमिस्सेसु) यहा पर सर्वदा घोरातिघोर अधकार रहता है । (पहभएसु) यहाँ की प्रत्येक वस्तु भय से भरपूर रहती है। (ववगय गहचदम्ररणवसत्तजोइण्सु) न यहां पर कोई ग्रह हैं न कोई चन्द्र है, न सूर्य है, न नक्षत्र हैं। ( मेयवसामसपडल-पोच्चड-पूय-रुहिरुक्षिण्ण विलीण-चिक्कण-रसिया वावण्णकुहियचिखल्लकद्दमेसु) मेद, वसाचर्वी और मास का ढेर इन स्थानों में सदा लगा रहता है। तथा पोचड गिलगिलायमान पूय-पीय, एव रुधिर से व्याप्त, गोंद के समान चिकने भरे हुए व्यापन्न दुर्ग धित ऐसे विकृत खून, से तथा चिकने घनकर्दम से ये स्थान सदा व्याप्त रहते हैं । (कुकलानल-पलित्तजाल-मम्मुरમાથાનો દુખાવો આદિ જે રેગ છે વૃદ્ધાવસ્થા આદિ જે અવરથા છે, તેમની પીડાને ત્યાં કઈ પણ ઇલાજ હોતું નથી તે પ્રતિકાર રહિત હોય छे, “अईव णिचधयारतमिरसेसु" मही यम घारमा घार म ५४२ २ छ “पइभएसु" मडानी १२ पस्तुलयन डाय छ “ववगयगहचदसूरणक्स जोइसेसु" मी अड नथी, यन्द्र नथी, सूर्य नथी नक्षत्र ५५] नथा " मेयवसा मसपडल-पोचड-पूय-रुहि रुक्षिण्ण-विलीण-चिकण, रसियावावण्णकुहिय चिखल्लकद्दमेसु" भेट, वसा य२मा अने भासना सा ते स्थानमा सह! પડેલા હોય છે તથા પિચ્ચડ-કિચડ અને પૂર પીબ તથા રક્તથી વ્યાપ્ત, ગુદરના જેવા ચીકણું, ભરેલા દુર્ગધમય વિકૃત લેહીથી, તથા ચીકણુ કાદવથી ते स्थान सा छपाये २९ छ “कुकूलानल-पलित्तजाल-मम्मुर-असिक्खुर