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शुदशिनी टीका अ० १ सू० २५ नरकोत्पत्यनु दु पानुभवनिरूपणम् ९७ अम्माम्मरीपादयः परमाधार्मिका असुरकुमारदेवास्तै सकुलेपु-व्याप्तेपु-एता. हशेषु नरकेपु ते प्राणनधकार 'अत्ताणा' जाणा-प्राणरहिताः दुःखनिमारका भावात् । अतएव 'असरणा' अगरणा -गरणरहिताः रक्षकाभागात् , 'उववज्जति उत्पद्यन्ते इति सम्बन्धः ॥५०२४॥
मूलम्-तत्थ य अंतोमुहुत्तलद्धिभवपच्चएणं निव्वत्तेति उ ते सरीर हुडं वीभच्छदरिसणिज्ज बीहणगं अट्रिपहारुणह रोमवज्जिय असुभगं दुक्खविसय, तओ य पज्जत्तिमुवगया इदिएहि पचहि वेदति वेदणं असुहाए वेयणाए उज्जलवल विउल-कम्खडखरफरुसपगाढपयंडघोरवीहणगदारुणाए,किंते२५॥ ___टीका-'तत्य य ' तत्र च नरकेपु उत्पत्त्यनन्तर ते पापकर्माणः 'अतो मुहुनलदिभवणपच्चएण' अन्तर्मुर्तरब्धिभवमत्ययेन=अन्तर्मुहूर्तस्य वैक्रियध्या परमापार्मिक असुरकुमार जाति के देवों से ये सदा सकुल रहते हैं । ऐसे इन नरकोमा प्राणवध के करने वाले जीव (अत्ताणा) दुःखनिवारक के अभाव से प्राण रहित एच (अप्सरणा) रक्षक कोई न होने से अशरण यन (उपवनति ) उत्पन्न होते है। . भावार्थ-प्राणवध करनेवाले जीव जो पापपुज का सचय करते हैं। उसके प्रभाव से वे यहां से मरकर शीघ्र ही नरक मे जम लेते हैं। नरकों में जीव की कैसी हालत होती है एव वहां की क्या स्थिति है यही योत सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा समझाई है ॥ २४॥
. टीकार्थ-(तत्य य) उन नरकों में उत्पत्ति के अनन्तर (ते)वे पापकर्म वाले जीव,(अतोमुत्तलद्धि भवपञ्चण्ण ) अन्तर्मुहर्त मे प्राप्त वैक्रियलઅાવી આદિ પર અધામિક અસુર કુમાર જાતિના દે છે પ્રાણવધ ४२नारा तपो मेथी त नरमा “ अत्ताणा" निवा२४२ मात्रा रात भने " असरणा" 0 २६७ नहीं डापाथी मश२ मा " उववजति " पन्न थाय छ
ભાવાર્થ–પ્રાણવધ કરનારા જીવ જે પાપપુજને સચય કરે છે તેના પ્રભાવે અહીંથી મરીને તરત જ નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે નરકમાં જીવોની કેવી હાલત થાય છે અને ત્યાની કેવી પરિસ્થિતિ છે, એ વાત સૂત્રકારે આ સૂત્રદ્વારા સમજાવી છે સૂ ૨૪
आर्थ-"तत्थ य" त्याहि, “तत्थ य"ते नरीमा उत्पत्ति थया पछी "a" ते ५ २ना। ७१ "अतोमुहुत्तलद्धिभव पञ्चएण" मन्तभुतभा पास वैक्ष्यि
प्र० १३