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सुदर्शिनी टीका ० १ सू० १३ पृथिनो कार्याहिंसा कारण निरूपणम्
अथ पूर्व पृथिवीयहिंसा कारणान्याह – 'करिसण' इत्यादि० । मूलम् -करिसण पोक्खरणी वावि-वेविण कूव सर-तलाग-चिइ इय खाइय-आराम - विहार थूम पागार-दार- गोउर अहालंगघरिया सेउ संकम पासाय विकप्प-भवण-घर सरण लयण आवणइय- देवकुल-चित्त सभा पत्रा अययण आवसह भूमिघर-मंडवाणकए-भायणभडोवगरणस्स य विविहस्त य अट्टाए पुढवि हिंसति मंदबुद्धिया || सू० १४ ॥
टीका- 'करण' इत्यादि । 'करिसण' कर्पण = कृषि: 'पोक्सरिणी' पुष्करिणी =समचतुष्कोणा कमल कानन कान्तिकमनिया पय. पूरपूरितपातालकुक्षितला नानाविध चित्रविचित्रपतत्त्रिकुल कृजित पुचित पृलिनमण्डकमण्डनसुरम्या, ' यानि '
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१ 'केयारो चष्पिण वप्पो' इति 'पाइअलच्छीनाममाला' ।
भावार्थ- जो आत्मवोध से चिकल प्राणी है वे स्थावर और त्रस जीवों की नाना प्रकार के प्रयोजनों के वशवर्ती होकर विराधना करते है । पृथिवीकाय आदि स्थावर जीव है, क्यों कि इनके स्थावर नामकर्म का उदय है । द्वीन्द्रियादिक बस जीव हैं, क्यों कि इनके त्रस नामकर्म का उदय है । इसी कारण से स्थापर जीव अपनी इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर चल फिर नही सकते हैं । त्रस जीव अपनी इच्छानुसार चल फिर सकते है ॥ स्र०१३ ॥
अय सूत्रकार उन कारणों को कहते हुए प्रथम पृथिवीकाय की हिंसा के कारणों को कहते हैं - ' करिसणपोक्खरिणी ' इत्यादि ।
टीकार्य - (करिसण) कृषि खेती के निमित्त (पोक्खरिणी) पोक्ख
ભાવાથ——જે પ્રાણીએ આત્મધથી રહિત છે તેએ સ્થાવર અને ત્રમ જીવાની અનેક પ્રકારના પ્રયાજનથી દોરાઇને હિંસા કરે છે - પૃથિવીકાય આદિ સ્થાવર જીવ છે, કારણકે તેમના સ્થાવર નામક ના ઉદ્ભય થયા હાય છે દ્વીન્દ્રિયાદિક ત્રસ જીવ છે, કારણકે તેમના ત્રસ નામકર્મના ઉદય થયેા હાય છે એ જ પ્રમાણે સ્થાવર જીવ પાતાની ઈચ્છા પ્રમાણે એક જગ્યાએથી બીજી જગ્યાએ જઇ શકતા નથી ત્રસજીવ પેાતાની ઇચ્છા પ્રમાણે હરીફરી રાકે છે ।।સૂ ૧૩ હવે સૂત્રકાર તે કારણેાને બતાવતા પ્રથમ પૃથિવીકાયની હિંસાના કારણેા याचे छे—' करिसणपोक्सरिणी " इत्याहि
टीजर्थ -- “करिसण" दृषि-तीने निमित्ते
"पोक्खरिणि" पोउपरि