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प्रश्नव्याकरण ते अनन्ता अपि जीवास्तथाविधकर्मोदयसामर्यात् समकमेपोत्पत्तिदेशमधिवसन्ति, समकमेव तच्छरीरमाश्रिताः पर्याप्ति समारभन्ते, समकमेव पर्याप्ताः भवन्ति । समकमेव च प्राणापानादि योग्यपुद्गलान् गृहन्ति । यच्च-एकस्य जीवस्याहारयोग्यपुद्गलोपादान तदेवान्येपामनन्तानामपि भवतीति । 'अणते' अनन्तान् 'अविजाणओ' पविजानतः एते घातका अस्मान् हनिष्यन्ति' इति ज्ञानविकलात् एकेन्द्रियान् 'परिजाणी य' परिजानतश्च स्ववधदुःखमनुभवतच द्वीन्द्रियादीन् 'जीवे' जीगन् 'इमेहिं' एभिः अनुपद वक्ष्यमाणैः 'विविहेहि विविधैः नानापकारः 'कारणेहि' फारणैः प्रयोजनैः 'हणति' घ्नन्ति येषां घात कुन्तिीत्यर्थः। कि ते? कानि तानि पृथिव्यादि-हिंसायाः कारणानि ? इत्याह-'करिसणे'त्यादिना ।।मू०१३।। स्पति कायिक होते है । ये जीव तथाविध कर्मोदयो के वश से एक साथ ही उत्पत्ति देश में रहते ह, एकसाथ ही इनकी शरीर पर्याप्ति पूर्ण होती है । इस तरह एक ही साथ पर्याप्त होकर अनत जीव एक ही साथ प्राणापानादि योग्य पुद्गलों को ग्रहण करते हैं। इनमे जो एक जीव का आहार होता है वही अन्य अनत जीवों का भी होता है। इस तरह के (अणते ) अनत साधारण जीवों को कि-(अविजाणओ) "जो यह नहीं जानते हैं कि ये घातक जन हमे मारेगे" इस प्रकार के ज्ञान से विकल हो रहे हैं ऐसे एकेन्द्रिय जीवो को, तथा (परिजाणओ य जीवे ) जो अपने बधादि सबधी दुःखों को जानते हैं, ऐसे दीन्द्रियादिक जीवों को, (इमेहिं ) इन अनुपद वक्ष्यमाण (विविहेहिं) नाना प्रकार के (कारणेहिं) प्रयोजनो से (रणति ) मारते हैं। (किंते) वे पृथिव्यादि की हिंसा के कारण कोनर है ? वह 'करिसण' इत्यादि अगले सूत्र से कहते है। દયને કારણે એક સાથે જ ઉત્પત્તિ દેશમાં રહે છે, એક સાથે જ તેમની શરીર–પર્યાપ્તિ પૂર્ણ થાય છે એ રીતે એક સાથે જ પર્યાપ્ત થઈને તે અને તે જીવ એક સાથે જ પ્રાણપાનાદિ ગુગલોને ગ્રડણ કરે છે તેમાં એક જીવને જે આહાર હોય છે તે જ આહાર અન્ય અનત જીવન પણ હોય છે આ
रना "अणते " मनात साधारण पाने -" अविजाणओ" "२ ते नथी જાણતા કે એ ઘાતક લેકે અમને મારી નાખશે” એ પ્રકારના જ્ઞાનથી જે डित छ । मेन्द्रिय योने, तथा " परिजाणओ य जीवे" पोताना पाहिसमधी माने गए छे सेवादीन्द्रिय माडि वाने, “इमेहिं " मारने छीना पहामा शक्ति "विविहेदि" विविध "कारेणहि" प्रयोनाया "हणति" मारेछ "किते" पृथ्वीय माहिनी साना या उय!
छ, करिसण" त्यादि वे पछीना सूत्र द्वारा डेवामा माछ