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सुदर्शिनीटीका म० १४ पृथियोकाहिंसाकारणनिरूपणम् 'घर' गृहा प्रसिदा, 'सरण' शरणानि सामान्यगृहाणि, 'लयण' लयनानि पर्वतपत्ति पापाणगृहाणि, 'आपण' आपणाः-हहाः, 'वेइय' वेदिका परिष्कता भूमिः, 'देवकुलानि यक्षगृहाणि, 'चित्तसभा' चित्रसभा-चित्रयुक्तसमास्थानम् , 'पवा' मपा-पानीयशाला 'प्याऊ' इति भाषा मसिद्धा, 'आययण' आयतन यज्ञशाला, 'आरसह भारसयः-तापसाश्रमा, 'भूमिघर' भूमिगृह-गुहारूप पृथिवीगृहम् , 'मडवाण' मण्डपा:-पटनिर्मितगृहास्तेपा, 'कर' कृते-एतनिमित्तमित्यर्थः। तथा 'भायण भडोवगरणस्स' भाजनमाण्डोपकरणस्य भाजनानि-सौवर्णराजवादीनि, भाण्डानि-मृण्मयानि शराबादीनि, उपकरणानि-उद्यल मुसलादीनि एतेषां समाहारद्वन्द्वे-भाजनभाण्डोपकरणम् , तस्य च 'विविहस्स य विविधस्य चम्भनेक मकारस्य 'अट्ठाए' अर्थाययोजनाय 'मदबुद्धिया' मन्दाद्धिका स्वपरहिवा. हितविवेकनिकलाजनाः, 'पुढची' पृथिवीं 'हिसति' घ्नन्ति ॥मू०१४॥ (घर) घर के निमित्त (सरण ) शरण-सामान्यगृह के निमित्त (लयण) लयन-पर्वतवति पापाण घर के निमित्त (आवण)आपण-हाट के निमित्त ( वेड्य ) वेदिका-चोतरे के निमित्त (देवकुल) देवकुल-यक्षायतन के निमित्त (चित्तसभा) चित्रसभा-चित्रयुक्त सभा के निमित्त (पा) प्रपा-प्याऊ के निमित्त "आययण" आयतन-यज्ञशाला के निमित्त (आवसह ) अवसय-तापसों के आश्रम के निमित्त (भूमिघर) भूमिगृह के निमित्त (मडवाणकर) मडप के निमित्त तथा (भायण भडोवगरणस्स य-विविहस्स य अट्ठाए पुढवि हिंसति मदघुद्धिया) नाना प्रकारके भाजन भाडोपकरणके निमित्त मन्दबुद्विजन पृथिवीकाय जीवोकी हिंसा करतेहैं । ___ भावार्थ-पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव है । इस एकेन्द्रिय जीव की हिंसा करने का निमित्त-प्रयोजन क्या होता है-इस विषय को सूत्र "पर" २२ मिमित्त "सरण" २२५ सामान्य न नमित्त "लयण" बयन पतिवति पाप धरने निमित्त "आषण" मानन निभित्ते "वेड्य"
शि-यातराने निमित्त "देवकुल" दुस-यक्षायतनने निमित्त "चित्तसभा" चित्रसभा-यित्रयुत समान मभित्त " पया" अपा-५२५ निमित्त "आययण" मायतन यामाने निमित्त "आवसह" सामथ-साना सश्रमान निमित्त "भूमिपर" भूभिडन निमित्त 'मडवाणकए" भ उप निमित्त, तथा "भायण भडोवगरणरस य विविहरस य अढाए पुढपि हिंसति मदबुद्धिया" भने १२ ભાજન, ભાડે પ્રકરણને નિમિત્તે મક બુદ્ધિવાળા લેકે પૃથ્વીકાય જીવોની હિંસા કરે છે
ભાવાર્થ–પૃથ્વકાયિક છે એક ઈન્દ્રિયવાળા હોય છે, એ એકેન્દ્રિય જીવની હિંસા કરવાના નિમિત્તો પ્રજને કયા ક્યા હોય છે, તે વિષે સૂત્ર