________________
-
-
सुशिनी टीका प० १ ९० १२ चतुरिन्द्रियादिना हिंसाप्रयोजननिरूपणम् ५५ णान् दीनान् 'यहवे' रहून् 'बेइदिए' द्वीन्द्रियान 'वत्योहरपरिमडणवा' वस्त्रोपगृहपरिमण्डनार्थम् , 'वत्य' वस्वाणि 'ओहर' उपगृहा-लघुगृहा' तेपा 'परिमडणट्ठा' परिमण्डनार्य शोभार्थम् । तत्र वस्त्राणा परिमण्डन कृमिरागेण रजनम् , उपगृहाणा परिमण्डन शक्तिचूर्णेनावलेपनम् । यद्वा-अर्थशब्दस्य प्रत्येकमभिसम्बन्धेवखार्थम् , उपगृहाथै, मण्डनार्थ चेति । तत्र पटसूत्रादि वस्त्रनिर्माणे कम्याधुपधातः, उपगृहनिर्माणे मृजलादिपु पुतरकाशुपमर्दनम् , हारादिपरिमण्डननिर्माणे शुक्याापहनन भरत्येव ।सू०१२।। के अभिप्राय से वे उनकी हिंसा करते है। इसी तरह (वेइदिए) शंग्व शुक्तिका आदि जो विचारे दो इन्द्रिय जीव है उन बहुत से दीन जीवों की भी (बत्योहर परिमडणहा ) वस्त्र, उपगृह-लघुघर की शोभानिमित्त हिंसा करते है । कृमिराग से वस्रों का रगनो यह चखों का परिमडना हैं। शख, शुक्तिका के चूने से छोटे २ घरो का पोतना यह उपग्रहों का परिमंडन है । अथवा अर्थ शब्द का प्रत्येक के साथ सबध करने पर ऐसा भी इस पद को अर्थ होता है कि वस्त्र के निमित्त, उपगृह के निमित्त और मण्डन-हार आदि भूपण के निमित्त पटसूत्र आदि वस्त्र के निर्माण में कृम्यादि जीवों का उपघात होता है, उपग्रहों के निर्माण में मिट्टी जल आदि में रहे ह लट आदि दो इन्द्रिय जीवों का उपमर्दन होता है, स्था हार आदि आभूपणों के निर्माण करने में शुक्ति आदि जीवों का हनन होता है।
भावार्य-भ्रमर, मधुकरी आदि जो चार इन्द्रिय वाले जीव हैं, तथा २ भाटे तमा तमनी डिंमा ४२ छ 2 त "येइदिए" ५५ ४ि मारे लिया। दिन्द्रिय वानी ५५ "वयोहरपरिमडणा" ५७०५ લઘુઘરની શોભાને નિમિત્તે હિંસા કરે છે કૃમિરાગથી વસ્ત્રોને રગવા તે વસ્ત્રોનું પમિડન કહેવાય છે ખ, શુતિકાના ચૂનાથી નાના નાના ઘરને લીપવા તે ઉપગ્રહ પરિમડન કહેવાય છે અથવા “અર્થ’ શબ્દને દરેકની સાથે સબ ધ રેડવાથી આ પદને એ પણ અર્થ થઈ શકે છે કે વિશ્વને માટે, ઉપગ્રહને માટે અને મડનહાર આદિ ભૂષણને માટે પટ્ટસૂત્ર આદિ વસ્ત્ર બનાવવામાં કમ્યાદિ છોને ઉપઘાત થાય છે, ઉપગ્રહોની રચનામાં માટી, જળ આદિમાં રહેલ લટ આદિ હિઈન્દ્રિય જીને ઘાત થાય છે, તથા હાર આદિ આભૂષણે બનાવવામા શુતિ આદિ જીવોની હત્યા થાય છે
ભાવાર્થ-ભ્રમર, મધમાખી આદિ જે ચાર ઇન્દ્રિય વાળા જીવો છે, તથા