________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली वाक्याथों स्याताम्, प्रत्यक्षस्य च काञ्चिदर्थक्रियामभिसन्धायोपलिप्सिते विषये प्रवृत्तस्यार्थक्रिया प्रमेया स्यात् । जनकत्वेन प्रवृत्तिपरत्वं वेदान्तानामपि विद्यते, तेभ्यः स्वरूपप्रतीतौ ध्यानाभ्यासादिप्रवृत्तस्य विगतविविधविकल्पविशदात्मज्ञानोदये सत्यपवर्गस्य भावात् । न चेदमावश्यकं यत्प्रवृत्तिनिवृत्त्यवधिकः प्रमाणव्यापार इति, तयोः पुरुषेच्छाप्रतिबद्धयोरनुत्पादेऽपि वस्तुपरिच्छेदमात्रेणापेक्षाबुद्धः पर्यवसानात् । न च कार्यान्वित एवार्थे पदानां शक्तिः, अनन्वितेऽपि व्युत्पत्तिदर्शनात् । यथेह प्रभिन्नकमलोदरे मधूनि मधुकर: पिबतीति वर्तमानापदेशे प्रसिद्धतरपदार्थोऽप्रसिद्धमधुकरपदार्थस्तु यं मधुपानकर्तारं पश्यति तं मधुकरवाच्यत्वेन प्रत्येति । अत्राप्यस्ति पारम्पर्येण कार्यान्वयो वाक्यप्रयोक्तुः, वृद्धव्यवहारे कार्यान्वितपदाथ मधुकरपदस्य व्युत्पत्तिभावादिति चेत् ? न, अनिश्चयात् । वाक्यप्रयोक्तुः कि
कारणता से ही अगर प्रतिपादकता मान ली जाय तो) मन में किसी कार्यविशेष की इच्छा से उत्पन्न तत्प्रयोजकीभूत किसी विषय के प्रत्यक्ष का वह विशेष कार्य प्रमेय होगा । कारणत्व रहने से ही अगर प्रतिपादकत्व मान लिया जाय तो फिर वेदान्त-वाक्य भी प्रवृत्ति के वाचक ही हैं। क्योंकि उनसे भी स्वरूप अर्थविषयक बोध के बाद ध्यान, अभ्यासादि में प्रवृत्त पुरुष को अनेक प्रकार के विकल्पों से रहित आत्मा के यथार्थज्ञान के उदय से अपवर्ग की प्राप्ति अवश्य होती है। यह आवश्यक नहीं है कि ( शब्द) प्रमाण के व्यापार की अवधि प्रवृत्ति और निवृत्ति ये ही दो मानी जाएँ। क्योंकि पुरुष की इच्छा से नियमतः प्रवृत्ति और निवृत्ति की उत्पत्ति न होने पर भी वस्तुओं का परिच्छेद' अर्थात् इष्टसाधकत्वादि का परिचय देकरके ही अपेक्षा बुद्धि चरितार्थ हो जाती है।
यह भी नियम नहीं है कि कार्य में अन्वित अर्थों में ही शब्दों की शक्ति है. क्योंकि कार्य में अनन्वित अर्थों में भी शब्दों की शक्ति देखने में आती है। जैसे "प्रभिन्नकमलोदरे मधूनि मधुकरः पिबति" (अर्थात् फूले कमल के बीच 'मधुकर' मधु को पीता है ) इत्यादि वाक्य के 'मधुकर' शब्द से । जिस व्यक्ति को पहिले से ( उक्त वृद्धव्यवहार की रीति से ) 'मधुकर' पद के अर्थ का ज्ञान नहीं भी है, वह भी वर्तमानकालिक उस मधुपान क्रिया में रत भ्रमर को 'मधुकर' शब्द का वाच्य समझ लेता है। (प्र०) बोद्धा को कार्यान्वित अर्थ में शक्ति गृहीत न होने पर भी वक्ता को तो कार्य में अन्वित अर्थ में ही शक्ति गृहीत है, क्योंकि उसका शक्तिज्ञान वृद्धव्यवहारमूलक हो है। अतः साक्षात् न सही, परम्परा से मधुकर शब्द की शक्ति कार्यत्वविशिष्ट अर्थ में ही है । ( उ०) यह आक्षेप भी अनिश्चय के कारण असङ्गत है,
. १. पहिले प्रमाण से यथार्थ ज्ञान की उत्पत्ति होती है। तदनन्तर उस ज्ञात ईप्सित विषय की इच्छा उत्पन्न होती है, अथवा द्वेष उत्पन्न होता है। ईप्सित
For Private And Personal