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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
६११
प्रशस्तपादभाष्यम् अनुमेयत्वेनोद्दिष्टे चानिश्चिते च परेषां निश्चयापादनाथ प्रतिज्ञायाः पुनर्वचनं प्रत्याम्नायः । प्रतिपाद्यत्वेनोद्दिष्टे चानिश्चिते च परेषां हेत्वादिमिरवयवैराहितशक्तीनां परिसमाप्तेन
(प्रथमतः प्रतिज्ञा वाक्य के द्वारा ) अनुमेय रूप से कथित होने पर भी ( समर्थ हेतु सम्बन्ध के प्रतिपादन के बिना ) अनिश्चित साध्य को दूसरों को निश्चित रूप से समझाने के लिए फिर से प्रयुक्त ( उपयुक्त हेतु के सम्बन्ध से युक्त साध्य के बोधक) प्रतिज्ञा वाक्य ही 'प्रत्याम्नाय' ( निगमन ) है। ( विशदार्थ यह है कि सर्वप्रथम प्रयुक्त ) केवल प्रतिज्ञावाक्य से साध्य अनुमेयत्व रूप से निर्दिष्ट होने पर भी बोद्धा पुरुष के लिए
न्यायकन्दली अनुसन्धानस्योदाहरणमाह-तथा चेति । वधानुसन्धानं दर्शयति-अनुमेयाभावे चेति ।
प्रत्याम्नायं व्याचष्टे-अनुमेयत्वेनोद्दिष्टे इति । प्रतिज्ञावचनेन पक्षे अनुमयत्वेन प्रतिपाद्यत्वेनोद्दिष्टे साध्यधर्मऽनिश्विते तस्यैव धर्मिणि प्रत्याम्नायः प्रत्यावृत्त्याभिधानम् येन वचनेन क्रियते तत्प्रत्याम्नायः। अभिहितस्य पुनरभिधानं किमर्थमत आह-परेषां निश्चयापादनार्थमिति । प्रथम साध्यमभिहितं न तु तनिश्चितम्, प्रतिज्ञामात्रेण साध्यसिद्धेरभावात् । तस्योपर्शिते हेतो, कथिते च हेतोः सामर्थ्य, निश्चयः प्रत्याम्नायेन क्रियत इत्यस्य साफल्यम् । एतदेव दर्शयति-प्रतिपाद्यत्वेनोद्दिष्ट इत्यादिना। प्रथमं वचनमात्रेण परेषां हो जाएंगी। जैसा न्यायभाषा में कहा गया है कि "हेतु के न रहने पर किसका (साध्यबोधक जनक) सामर्थ्य ( उदाहरणादि वाक्यों से ) दिखलाया जायगा ?
'तथा च' इत्यादि वाक्य के द्वारा अनुसन्धान ( उपनय) का उदाहरण कहा गया है । 'अनुमेयाभावे' इस सन्दर्भ से 'वैधानुसन्धान' का उदाहरण दिखलाया गया है।
'अनुमेयत्वेनोद्दिष्टे' इत्यादि वाक्य के द्वारा 'प्रत्याम्नाय' (निगमन ) की व्याख्या करते हैं । प्रतिज्ञावाक्य के द्वारा 'उद्दिष्ट' अर्थात् कहने के लिए अभीष्ट जो 'अनिश्चित' साध्य रूप धर्म, उसी साध्य रूप धर्म का उसी पक्ष में जो प्रत्याम्नाय' अर्थात् दूसरी बार कहना, जिस वाक्य के द्वारा हो उसी को प्रत्याम्नाय' कहते हैं। (प्रतिज्ञा वाक्य के द्वारा) कहे हुए साध्य रूप धर्म को ही फिर से क्यों कहते हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर 'परेषां निश्चयापादनार्थम्' इस वाक्य से दिया गया है । पहिले (प्रतिज्ञा वाक्य के द्वारा ) केवल साध्य कहा जाता है, किन्तु उससे साध्य का निश्चय नहीं हो पाता, क्योंकि
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