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न्यायकन्दली संवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
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[ कर्मनिरूपण
प्रशस्तपादभाष्यम्
हि द्रष्टा अवयवानां पार्श्वतः पर्यायेण दिक्प्रदेशैः संयोगविभागान् पश्यति तस्य भ्रमणप्रत्ययो भवति, यो ह्यवयविन ऊर्ध्वप्रदेशैर्विभागमधः संयोगं चावेक्षते तस्य पतनप्रत्ययो भवति । यः पुनर्नालि कान्तदेशे संयोगं बहिदेशे च बहिर्देशे च विभागं पश्यति, तस्य प्रवेशनप्रत्ययो भवतीति सिद्धः कार्यभेदान्निष्क्रमणादीनां प्रत्ययभेद इति । भवतृत्क्षेपणादीनां जातिभेदात् प्रत्ययभेदः, निष्क्रमणादीनां तु कार्यभेदादिति ।
देखता है, उसे उनमें भ्रमण की प्रतीति होती है । जो पुरुष अवयवी का ऊपर के देशों के साथ विभाग और नीचे के प्रदेश के साथ संयोग इन दोनों को देखता है, उसे उनमें पतन क्रिया की प्रतीति होती है । जो पुरुष उस अवयवी का नाली के भीतर के प्रदेश के साथ संयोग एवं ऊपर के देश के साथ विभाग को देखता है, उसे उसी अवयवी में प्रवेशन की प्रतीति होती है । इस प्रकार कार्यों के भेद से विभिन्न प्रकार की अनुवृत्ति की प्रतीतियाँ और व्यावृत्ति की प्रतीतियाँ होती हैं । अतः उत्क्षेपणादि क्रियाओं में उत्क्षेपण - त्वादि जातियों की विभिन्नता से ही विभिन्न प्रकार की अनुवृत्तिप्रतीतियों और व्यावृत्तिप्रतीतियों के होने पर भी निष्क्रमणादि क्रियाओं में कार्यों की विभिन्नता से ही अनुवृत्ति की प्रतीतियाँ और व्यावृत्ति की प्रतीतियाँ होती हैं ।
न्यायकन्दली
इत्याह- कथमिति । तद् विवृणोति- - अथ मतमित्यादिना । अत्र ब्रूम इति सिद्धान्तोपक्रमः । यत् त्वयोक्तं तन्न, अवयवानामवयविनश्च दिग्देशविशिष्टानां संयोगविभागानां भेदात् । अस्य सुगमं विवरणम् । अवयवकर्मसु पार्श्वतः संयोगविभागकारणेषु भ्रमणप्रत्ययः, अवयविक्रियायां कार्यभेदात् पतनप्रवेशनप्रत्ययावित्यर्थः ।
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इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा इसी 'आक्षेपग्रन्थ' का विवरण देते हैं । 'अत्र ब्रमः' इत्यादि ग्रन्थ से इस प्रसङ्ग में अपना सिद्धान्त करने का उपक्रम करते हैं । अर्थात् तुमने जो आक्षेप किया है वह ठीक नहीं है, क्योंकि विभिन्न दिग्देशों में विद्यमान अवयवों और अवयवियों के संयोग और विभाग भी विभिन्न ही होते हैं । इस भाष्यग्रन्थ की व्याख्या सुलभ है । अभिप्राय यह है कि अवयवों के संयोग और विभाग इन दोनों की कारणीभूत क्रियायें जब पार्श्व में होती हैं तो उनमें 'भ्रमण' का व्यवहार होता है । एवं अवयवी की क्रिया से होनेवाले विभिन्न कार्यों से उसी में 'पतन प्रवेशनादि' की प्रतीतियाँ भी होती हैं ।