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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ कर्म निरूपण
प्रशस्तपादभाष्यम् व्यस्तानपेक्षमाणो यः संयोगविशेषः । नोदनमविभागहेतोरेकस्य कर्मणः कारणम् , तस्माच्चतुर्वपि महाभूतेषु कर्म भवति । यथा पङ्काख्यायां पृथिव्याम् । का ही कारण है। इस (संयोग) से चारों महाभूतों में क्रियाओं की उत्पत्ति होती है। जैसे कि पङ्क नाम की पृथिवी में (नोदन संयोग से क्रिया की उत्पत्ति होती है)।
न्यायकन्दली तत्र नोदनं गुरुत्वद्रवत्वप्रयत्नवेगान् समस्तव्यस्तानपेक्षमाणो यः संयोगविशेषः । कथं संयोगविशेषो नोदनमुच्यते, तत्राह-नोदनमविभागहेतोः कर्मणः कारणमिति । नोद्यनोदकयोः परस्परविभागं न करोति यत् कर्म तस्य कारणं नोदनम् ।
किमुक्तं स्यात् ? अनेन संयोगेन सह नोदको नोद्यं नोदयति नान्यथा, तेनायं नोदनमुच्यते । नोदनं तु क्व कर्मकारणमत्राह-यथा पङ्काख्यायां पृथिव्यामिति । यदा पङ्कस्योपरि मन्दव्यवस्थापिता प्रस्तरगुटिका क्रमशः पङ्कन सममधो गच्छति, तदा गुरुत्वापेक्षः प्रस्तरपङ्कसंयोगो नोदनम् । यदा प्रयत्नेन दूरमुत्थाप्य प्रस्तरेणाभिहन्यते पस्तदा गुरुत्वप्रयत्नवेगापेक्षः संयोगो नोदनम्, यदा जलेनाहन्यते तदा समस्तापेक्षः संयोगो नोदनमिति यथासम्भवमूह्यमिति ।
अभी कहा है कि पृथिव्यादि महाभूतों में नोदनादि से क्रिया की उत्पत्ति होती है, अतः प्रश्न उठता है कि यह 'नोदन कौन सी वस्तु है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'तत्र नोदनं गुरुत्वद्रवत्वप्रयत्नवेगान समस्तव्यस्तानपेक्षमाणो यः संयोगविशेषः' इस वाक्य से दिया गया है। उक्त विशेष प्रकार के सयोग को ही नोदन क्यों कहते हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर 'नोदनमविभागहेतोः कर्मणः कारणम्' इस वाक्य से दिया गया है। नोद्य और नोदक इन दो द्रव्यों में जिस क्रिया से विभाग की उत्पत्ति नहीं होती है, नोदन ही उस क्रिया का हेतु है। इससे क्या निष्कर्ष निकला ? यही कि नोदन रूप संयोग के साथ ही नोदक अपने नोद्य का नोदन करता हैं, अन्यथा नहीं। इसी कारण यह संयोग 'नोदन' कहलाता है। नोदनसंयोग से क्रिया की उत्पत्ति कहाँ होती है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'यथा पत्राख्यायां पृथिव्याम्' इस वाक्य के द्वारा दिया गया है । जिस समय पङ्क के ऊपर धीरे से रक्खा हुआ पत्थर का टुकड़ा क्रमशः पङ्क के साथ नीचे की ओर जाता है, वहाँ पत्थर और पङ्क का संयोग रूप नोदन केवल गुरुत्व से उत्पन्न होता है। जिस समय प्रयत्न के द्वारा पत्थर को दूर उछाल कर पङ्क को आघात पहुंचाया जाता है, वहाँ जिस नोदन संयोग की उत्पत्ति होती है, उसका गुरुत्व, प्रयत्न और वेग ये तीनों कारण हैं। जिस समय वही पङ्क जल के द्वारा आहत किया जाता है, वहाँ का नोदन उन सभी कारणों से उत्पन्न होता है । इसी प्रकार जहाँ जिस प्रकार की सम्भावना हो उसके अनुसार कल्पना करनी चाहिए।
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