Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 833
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७५८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् सामान्यनिरूपण न्यायकन्दली मप्येकत्वापत्तिः, दृष्टा हि वाहदोहनादिकिया गवादिव्यक्तीनामिव महिष्यादिव्यक्तीनामपि । या च गौर्न दुह्यते न च वाह्यते, सा गौर्न स्यात् । अपि च सामान्याभावे कोऽर्थः शब्दसंसर्गविषयः ? न तावत् स्वलक्षणम्, तस्य क्षणिकस्य सर्वतो व्यावतस्य सतविषयत्वाभावात् । नापि विकल्पः शब्दार्थः, तस्य क्षणिकत्वादसाधारणत्वाच्च । विकल्पाकारः शब्दार्थ इति चेत् ? किं विकल्पाकारो विकल्पव्यतिरिक्तः ? अव्यतिरिक्तो वा ? यदि भिन्नः, स किं सर्वविकल्पसाधारणः, किं वा प्रतिविकल्पं भिद्यते ? साधारणत्वे तावदेतस्य सामान्यादभेदः, यदि परम् ? तव ज्ञानधर्माऽयमस्माकं चार्थधर्मः (इति) बहिर्मुखतया प्रतीयमानत्वादिति (न) कश्चिद् विशेषः । यदि व्यतिरिक्तोऽयमाकारः प्रतिज्ञानं भिद्यते, अथवा ज्ञानादव्यतिरिक्त एव, उभयथापि न शब्दसंसर्गयोग्यता, ज्ञानवदशक्यसङ्केतत्वात् । विकल्पः पारम्पर्येण तदुत्पत्तिप्रतिबन्धाद् बाह्यात्मतया स्वाकारमारोप्य विकल्पयति, तत्रायं शब्दसंसर्ग एक आकार की कथित प्रतीति नहीं होगी। एवं जिस गाय से न दूध मिलता है और न माल ढोया जाता है वह गाय ही नहीं रह जाएगी। दूसरी बात यह है कि यदि सामान्य नाम की कोई वस्तु ही न हो तो शब्दों का ( सङ्केत रूप ) सम्बन्ध कहाँ मानेंगे? घटादि विषयों के 'स्वलक्षण' में घटादि शब्दों का सम्बन्ध मान नहीं सकते, क्योंकि उक्त 'स्वलक्षण' तो क्षणिक है, एवं और किसी भी वस्तु में वह नहीं रहता है, अत: उसमें किसी भी शब्द का ( सङ्केत या ) सम्बन्ध नहीं हो सकता। उसका विकल्प भी शब्दसङ्केत का विषय नहीं हो सकता, क्योंकि 'विकल्प' भी क्षणिक है, और साथ साथ असाधारण ( एकमात्र पुरुषवृत्ति) भी है। (प्र०) एक विकल्पव्यक्ति क्षणिक और असाधारण है, किन्तु विकल्पों के आकार तो असाधारण हैं, ( क्योंकि एक आकार के अनेक विकल्प अनेक पुरुषों में देखे जाते हैं, अतः विकल्प का आकार शब्दसङ्कत का विषय हो सकता है। ( उ०) इस प्रसङ्ग में पूछना है कि विकल्प का यह आकार विकल्प से भिन्न कोई स्वतन्त्र वस्तु है ? या यह विकल्प से अभिन्न ( वस्तुतः विकल्प ही ) है ? यदि पहिला पक्ष मानें ( कि विकल्प का आकार विकल्प से भिन्न स्वतन्त्र वस्तु है) तो फिर इस प्रथम पक्ष के प्रसङ्ग में भी यह पूछना है कि यह 'आकार' सभी विकल्पों में साधारण रूप से रहनेवालो एक ही वस्तु है ? या प्रत्येक विकल्प में रहनेवाला आकार अलग अलग है ? यदि सभी विकल्पों में साधारण रूप से रहनेवाले एक 'आकार' को स्वीकार कर लिया जाय, तो वह सामान्य से अभिन्न ही होगा। फलतः सामान्य स्वीकृत ही हो गया। थोड़ा अन्तर इतना रह जाता है कि उसे (आकार को आप ज्ञानों का धर्म मानते हैं, और हम लोग उसे बहिर्मुखतया प्रतीत होने से ( सामान्य को) विषयों का धर्म मानते हैं। यदि आकार को विकल्प से भिन्न मानें तो फिर वह ज्ञान से भिन्न ही होगा या ज्ञान स्वरूप ही होगा । दोनों ही स्थितियों में उनमें शब्दों के सम्बन्ध की सम्भावना नहीं रहेगी, क्योंकि ज्ञान की तरह ( उससे भिन्न या अभिन्न आकार भी क्षणिक होने के कारण ) शब्दसङ्केत For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869