Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 846
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७७१ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् भवति यथा घटादिषु प्रदीपात्, न तु प्रदीपे प्रदीपान्तरात् । यथा गवाश्वमांसादीनां स्वत एवाशुचित्वं तद्योगादन्येषाम, तहापि तादात्म्यादन्त्यविशेषेषु स्वत एव प्रत्ययव्यावृत्तिः, तद्योगात् परमाण्वादिष्विति । इति प्रशस्तपादभाष्येविशेषपदार्थः समाप्तः । -:०: कारण के ही) होंगी। (उ०) यह नहीं हो सकतीं, क्योंकि परमाणु में परमाणु का तादात्म्य है। जो वस्तु जिस स्वरूप का नहीं है, उस वस्तु में उक्त अन्य वस्तु की बुद्धि उस वस्तु से भिन्न वस्तु रूप कारण से ही उत्पन्न होती है, जैसे कि घटादि की प्रतीति प्रदीप से होती है, किन्तु प्रदीप की प्रतीति के लिए दूसरे प्रदीप की अपेक्षा नहीं होती। जिस प्रकार गो और अश्व के मांसों में अशुचित्व स्वतः ( बिना किसी और सम्बन्ध के ही ) है, किन्तु उनसे सम्बद्ध वस्तुओं में उसी के सम्बन्ध से अशुचित्व होता है। उसी प्रकार यहाँ भी अन्त्य-विशेषों में तादात्म्य से अर्थात् और किसी के सम्बन्ध के बिना ही व्यावृत्ति-प्रतीति होती है, किन्तु परमाणुओं में अन्त्यविशेष के सम्बन्ध से ही व्यावृत्ति-प्रतीति होती है। प्रशस्तपाद भाष्य में विशेष का निरूपण समाप्त हुआ। न्यायकन्दली अतदात्मकेष्वन्यनिमित्तः प्रत्ययो भवति, न तदात्मकेषु । यथा घटादिष्वप्रकाशस्वभावेषु प्रदीपादेः प्रकाशस्वभावात् प्रकाशो भवति, न तु प्रदीपे प्रदीपान्तरात् प्रकाशः किन्तु स्वत एव । यथा गवाश्वमांसादीनां स्वत एवाशुचित्वम्, स्प्रष्टुः विवरण ‘इह' इत्यादि ग्रन्थ से दिया गया है। अभिप्राय यह है कि जिन दो वस्तुओं में तादात्म्य नहीं है, उनमें से एक में अन्य दूसरे के सम्बन्ध के लिए अन्य कारण की अपेक्षा होती है। जो अभिन्न हैं उनमें से किसी में सम्बन्ध के लिए दूसरे की अपेक्षा नहीं होती है। जैसे कि घटादि प्रकाश-स्वभाव के नहीं हैं (प्रकाश के साथ उनका तादात्म्य नहीं है) अतः घट में प्रकाश के लिए प्रकाश-स्वभाव के प्रदीप रूप अन्य पदार्थ की अपेक्षा होती है। किन्तु प्रदीप के प्रकाश के लिए किसी दूसरे प्रदीप की अपेक्षा For Private And Personal

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