Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 853
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७७८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [समवायनिरूपण प्रशस्तपादभाष्यम् ननु यद्येकः समवायः १ द्रव्यगुणकर्मणां द्रव्यत्वगुणत्वकर्मत्वादिविशेषणैः सह सम्बन्धैकत्वात् पदार्थसङ्करप्रसङ्ग प्रतीति का कारण होने से समवाय भी एक ही है। एवं समवाय में अवान्तर भेद का ज्ञापक कोई प्रमाण भी उपलब्ध नहीं होता है। अत: अपने सभी अनुयोगियों में रहनेवाला समवाय एक ही है। (प्र.) ( यदि अपने सभी अनुयोगियों में रहनेवाला ) समवाय एक ही है, तो फिर द्रव्य गुण और कर्म इन तीनों में से प्रत्येक का द्रव्यत्वादि सभी विशेषों के साथ समवाय सम्बन्ध एक ही है, अत: द्रव्यादि में भी यह गुण हे या कर्म है इस प्रकार के अनियमित व्यवहार होने लगेंगे। न्यायकन्दली प्रत्ययः, तस्य कर्तृत्वाद् भावद्रव्यत्वादीनां स्वाश्रयादिभ्यः परस्परतश्चार्थान्तरभावः, तथा समवायस्यापि पञ्चसु पदार्थ विहेति प्रत्ययदर्शनात तेभ्यः पञ्चभ्यः पदार्थान्तरत्वम् । किमयमेक आहोस्विदनेक इत्यत्राह-न च संयोगवन्नानात्वमिति । यथा संयोगो नाना नैवं समवायः । कुत इत्यत्राह--भाववल्लिङ्गाविशेषाद् विशेषलिङ्गाभावाच्च । यथा सत्सदितिज्ञानस्य लक्षणस्य सर्वत्राविशेषादवैलक्षण्याद् विशेषे भेदे लक्षणस्य प्रमाणस्याभावाच्च सर्वत्रको भावः, तद्वदिहेति प्रत्ययों का कर्त्ता रूप कारण होने से जिस प्रकार सत्ता और द्रव्यत्वादि जातियों में से प्रत्येक में परस्पर एक दूसरे से भेद की मिद्धि होती है, एवं उनके द्रव्यादि आश्रय से भी उन जातियो में भेद की प्रतीति होती है, उसी प्रकार समवाय भी द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और विशेष इन पांच पदार्थों में 'इह प्रत्यय' का कर्ता रूप कारण है, अतः समवाय इन पाँचों पदार्थों से भिन्न पदार्थ है। इस प्रकार से सिद्ध समवाय रूप स्वतन्त्र पदार्थ एक है ? या अनेक ? इसी प्रश्न का उत्तर 'न च संयोगवन्नानात्वम्' इस वाक्य से दिया गया है। अर्थात् संयोग की तरह समवाय अनेक नहीं है । क्यों अनेक नहीं है ? इस प्रश्न का उत्तर 'भाववल्लिनाविशेषाल्लिङ्गाभावाच्च' इन दोनों वाक्यों से दिया गया है । अर्थात् द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों में 'सत्' इस आकार का ज्ञान रूप लिङ्ग अर्थात् लक्षण समान रहने से जिस प्रकार तीनों में रहने वाली एक ही सत्ता जाति की सिद्धि होती है। एवं उन तीनों में रहनेवाली सत्ता जाति में परस्पर भेद के साधक किसी प्रमाण के उपलब्ध न होने से समझते हैं कि सत्ता जाति सर्वत्र एक ही है। उसी प्रकार द्रव्यादि पाँचों पदार्थों में कथित 'इह प्रत्यय' रूप लक्षण समान रूप से है एवं प्रत्येक में रहनेवाले समवाय में परस्पर भेद का साधक कोई प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है । अतः समझते हैं कि अपने For Private And Personal

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