Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 852
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ७७७ प्रशस्तपादभाष्यम् कर्तृत्वात् स्वाश्रयादिभ्यः परस्परतश्चान्तरभावः, तथा समवायस्यापि पञ्चसु पदार्थेविहेतिप्रत्ययदर्शनात् तेभ्यः पदार्थान्तरत्वमिति । न च संयोगवन्नानात्वम् , भाववल्लिङ्गाविशेषाद् विशेषलिङ्गाभावाच्च । तस्माद् भाववत् सर्वत्रैकः समवाय इति । समवाय के अनुयोगी द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और विशेष इन पाँचों पदार्थों में यथासम्भव 'यह यहाँ है' इस आकार की प्रतीतियाँ होती हैं, अतः समवाय भी द्रव्यादि पाँचों पदार्थो से भिन्न स्वतन्त्र पदार्थ ही है। संयोग की तरह यह (समवाय) अनेक भी नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार द्रव्य, गुण और कर्म सभी में यह सत् है यह सत् है' इस साधारण आकार की प्रतीति होती है और इसी कारण द्रव्य गुण और कर्म इन तीनों में रहनेवाला 'सत्ता' नाम का सामान्य एक ही है, उसी प्रकार द्रव्यादि अपने अनुयोगियों में अपने प्रतियोगियों का यह यहाँ है' इस एक प्रकार की न्यायकन्दलो एतद् विवृणोति- यथेति । भाव इति सत्तासामान्यमुच्यते । द्रव्यत्वादीत्यादिपदेन गुणत्वादिपरिग्रहः । यथा भावस्य स्वाधारेषु द्रव्यगुणकर्मसु आत्मानुरूपः प्रत्ययः सत्सदितिप्रत्ययः, द्रव्यत्वस्य स्वाश्रयेषु द्रव्येष्वात्मानुरूपः प्रत्ययः द्रव्यं द्रव्यमितिप्रत्ययः, गुणत्वस्य स्वाश्रयेषु गुणेष्वात्मानुरूपः प्रत्ययो गुण इति प्रत्ययः, कर्मत्वस्य स्वाश्रयेषु कर्मसु आत्मानुरूपः प्रत्ययः कर्मेति प्रश्न का उत्तर 'भाववल्लक्षणभेदात्' इस सन्दर्भ के द्वारा दिया गया है। इस सन्दर्भ के 'भावस्य' इस पद का 'भाव' शब्द सत्ता रूप जाति का बोधक है। एवं 'द्रव्यत्वादि' पद में प्रयुक्त 'आदि' शब्द से गुणत्वादिजातियों का संग्रह समझना चाहिए । (तदनुसार उक्त सन्दर्भ का यह अभिप्राय है कि ) सत्ता रूप जाति का स्वाधार में अर्थात् द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों में आत्मानुरूप प्रत्यय अर्थात् द्रव्य सत् है, गुण सत् है, कर्म सत् है इत्यादि आकार के ज्ञान होते हैं, एवं द्रव्यत्व का अपने आश्रय में अर्थात् सभी द्रव्यों में 'इदं द्रव्यम्' इस आकार की प्रतीति होती है, एवं गुणत्व जाति की 'आत्मानुरूप' प्रतीति अर्थात् सभी गुणों में 'यह गुण है' इस आकार की प्रतीति होती है। एवं कर्मत्व जाति का अपने आश्रय सभी कर्मों में 'आत्मानुरूपप्रत्यय' अर्थात् 'यह कर्म है' इस आकार की प्रतीति होती है। इन आत्मानुरूप ६८ For Private And Personal

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