Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 850
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ७७५ प्रशस्तपादभाष्यम् पटः, इह वीरणेषु कटः, इह द्रव्ये गुणकर्मणी, इह द्रव्यगुणकर्मसु सत्ता, इह द्रव्ये द्रव्यत्वम्, इह गुणे गुणत्वम्, इह कर्मणि कमत्वम्, इह नित्यद्रव्येऽन्त्या विशेषा इति प्रत्ययदर्शनादस्त्येषां सम्बन्ध इति ज्ञायते । न चासौ संयोगः, सम्बन्धिनामयुतसिद्धत्वात् अन्यतरप्रकार इस 'मटके में दही है' यह प्रतीति (दधि और मटके में संयोग) सम्बन्ध के रहते ही होती है, उसी प्रकार 'इन तन्तुओं में पट है, इन वीरणों ( तृणविशेषों ) में चटाई है, इस द्रव्य में गुण और कर्म हैं, द्रव्य गुण और कर्मो में सत्ता है द्रव्य में द्रव्यत्व है, गुण में गुणत्व है, कर्म में कर्मत्व है, इन नित्यद्रव्यों में विशेष है, इत्यादि प्रतीतियाँ भी होती हैं, अतः समझते हैं कि (प्रतीति के विषय इन आधार और आधेय में भी) कोई सम्बन्ध अवश्य है। __ कथित प्रतीतियों की उपपत्ति संयोग से नहीं हो सकती, क्योंकि उन प्रतीतियों में विशेष्य और विशेषण रूप से भासित होनेवाले प्रतियोगी और अनुयोगी अयुतसिद्ध हैं, एवं अन्यतर कर्म या उभयकर्म या विभाग उस सम्बन्ध के न्यायकन्दली तथेह तन्तुषु पट इत्यादिप्रत्ययानां दशनादस्त्येषां तन्तुपटादीनां सम्बन्ध इति ज्ञायते। इह तन्तुषु पट इत्यादिप्रत्ययाः सम्बन्धनिमितका अवधारितप्रत्ययत्वात, इह कुण्डे दधीतिप्रत्ययवत् ।। नन्वयं संयोगो भविष्यतीत्यत आह-न चासौ संयोग इति । असौ तन्तुपटादीनां सम्बन्धो न संयोगो भवति, कुतः ? इत्यत्राह-सम्बन्धिनामअवश्य है। इससे यह अनुमान निष्पन्न होता है कि जिस प्रकार इस मटके में दही हैं' यह निश्चयात्मक प्रतीति दही और कुण्ड में संयोग सम्बन्ध के रहने पर ही होती है, उसी प्रकार ‘इन तन्तुओं में पट है' इस प्रकार की निश्चयात्मक प्रतीति भी उन दोनों में किसी सम्बन्ध के कारण ही उत्पन्न होती है ( वही सम्बन्ध समवाय है)। (मटके और दही के संयोग की तरह ) 'तन्तुओं में पट है' इत्यादि प्रतीतियों का नियामक सम्बन्ध भी संयोग ही होगा? इसी प्रश्न का उत्तर 'न चासो संयोगः' इत्यादि से दिया गया है । 'असौ' अर्थात् तन्तु और पट का सम्बन्ध, संयोग क्यों नहीं है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'सम्बन्धिनामयुतसिद्धत्वात्' इस वाक्य के द्वारा दिया गया है । अर्थात् संयोगसम्बन्ध युतसिद्ध वस्तुओं में ही होता है, और यह (समवाय ) सम्बन्ध अयुतगिद्धों में होता है। क्योंकि संयोग अपने प्रतियोगी और अनुयोगी दोनों में से एक के कर्म से होगा, या उक्त प्रतियोगी और अनुयोगी दोनों For Private And Personal

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