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न्याय कन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
स्यात् ? ततः किं स्यात् ? नैवं भवति । यथा न योगजाद् धर्मादशुक्ले शुक्लप्रत्ययः सञ्जायते, अत्यन्तादृष्टे च प्रत्यभिज्ञानम् । यदि स्यान्मिथ्या भवेत । तथेहाप्यन्त्य विशेषमन्तरेण योगिनां न योगजादू धर्मात प्रत्ययव्यावृत्तिः प्रत्यभिज्ञानं वा भवितुमर्हति ।
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[ विशेषनिरूपण
अथान्त्य विशेषेष्विव परमाणुषु कस्मान्न स्वतः प्रत्ययव्यावृत्तिः कल्प्यत इति चेत् ? न, तादात्म्यात् । इहातदात्मकेष्वन्यनिमित्तः प्रत्ययो और प्रत्यभिज्ञा की उपपत्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार शुक्ल रूप से शून् 4 द्रव्य में शुक्ल की प्रतीति एवं पहिले से न देखे हुए वस्तुओं में प्रत्यभिज्ञा ये दोनों ही योगियों को भी नहीं होती हैं, यदि हों तो वे मिथ्या ही होंगी । इसी प्रकार कथित स्थलों में भी व्यावृत्ति प्रतीतियाँ और प्रत्यभिज्ञा ये दोनों बिना अन्त्य - विशेष के केवल योगजनित को भी नहीं हो सकतीं ।
उत्कृष्ट धर्म से योगियों
( प्र० ) यह कल्पना क्यों नहीं करते कि अन्त्य - विशेषों की तरह उक्त परमाणुओं में भी व्यावृत्ति प्रतीतियाँ स्वतः ( बिना और किसी
न्यायकन्दली
तथा अन्त्यविशेषमन्तरेण प्रत्ययव्यावृत्तिः प्रत्यभिज्ञानं च न भवितुमर्हति । योगजाद् धर्मादतीन्द्रियार्थदर्शनं न पुनरस्मान्निनिमित्त एवं प्रत्ययो भविष्यतीत्यभिप्रायः ।
पुनश्चोदयति - अथान्त्यविशेषेष्विति । न तावदन्त्यविशेषेष्वपि विशेषान्तरसम्भवोऽनवस्थानात् । यथा च तेषु विशेषान्तरमन्तरेण स्वत एव प्रत्ययव्यावृत्तिर्भवति योगिनां तथा परमाणुष्वपि भविष्यति ? किं विशेषकल्पनयेत्यत्रोत्तरमाह - नेति । विवृणोति - इहेति ।
यत्त्वयोक्तं तन्न, कुतस्तादात्म्यात् ।
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एतदेव
'अथान्त्य विशेषेषु' इत्यादि ग्रन्थ से इसी प्रसङ्ग में पुनः आक्षेप करते हैं । अर्थात् कथित 'अन्त्य विशेषों' में दूसरे 'विशेष' की सम्भावना नहीं है, क्योंकि ( ऐसी कल्पना करने पर ) अनवस्थादोष होगा। यह जो आक्षेप किया गया है कि विशेषों में दूसरे विशेषों के न रहने पर भी जैसे कि स्वतः उनमें परसर व्यावृत्ति-बुद्धि योगियों को होती है. वैसे ही परमाणु प्रभृति में स्वतः ही व्यावृत्ति बुद्धि होगी। इसके लिए 'विशेष' नाम के स्वतन्त्र पदार्थ को मानने की क्या आवश्यकता हैं ? उसी ( आक्षेप ) के समाधान के लिए 'न' इत्यादि सन्दर्भ लिखा गया है । अर्थात् तुमने जो आक्षेप किया है वह ठीक नहीं है, क्योंकि परमाणु प्रभृति में 'परस्पर तादात्म्य' है । इसी ' तादात्म्य' हेतु का