Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 843
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम [विशेषनिरूपण प्रशस्तपादभाष्यम् परमाणुषु मुक्तात्ममनस्सु चान्यनिमित्तासम्भवाद् येभ्यो निमित्तेभ्यः बड़ा है, या इसके गले में बहुत बड़ा घण्टा है। इसी प्रकार हम लोगों से सर्वथा उत्कृष्ट योगियों को सभी परमाणओं में नित्य एवं समान आकृति के रहते हुए भी यह परमाणु उस परमाणु से भिन्न है' इस प्रकार की व्यावृत्ति की प्रतीति जिस कारण से होती है, वही 'विशेष' है। मुक्त आत्माओं में सर्वथा न्यायकन्दली यथास्मदादीनां गवादिव्यक्तिषु प्रत्ययभेदो भवति, तथा परमाण्वादिष्वपि तद्दशिनां परस्परापेक्षया प्रत्ययभेदेन भवितव्यम्, व्यक्तिभेदसम्भवात् । न चास्य व्यक्तिभेद एव निमित्तम् । तदुपलम्भेऽपि स्थाण्वादिषु संशयदर्शनात् । निमित्तान्तरं च नास्ति, आकृतेर्गुणस्य क्रियायाश्च तुल्यत्वात् । न च निनिमित्तः प्रत्ययभेदो दृष्टः, तस्माद् यदस्य निमित्तं स विशेष इति । देशविप्रकर्षेण कालविप्रकर्षेण च दृष्टाः परमाणवः कस्यचित् प्रत्यभिज्ञाविषयाः सामान्यविशेषत्वाद् घटादिवत् । न च पूर्वदृष्टेऽर्थे प्रत्यभिज्ञानं विशेषावगतिमन्तरेण भवति, अतोऽस्ति तस्य निमित्तं विशेषः । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार हम जैसे साधारण जनों को गो प्रभृति व्यक्तियों में विभिन्न प्रकार की प्रतीतियां होती हैं, क्योंकि वे व्यक्तियां परस्पर विभिन्न होती हैं। इसी प्रकार परमाणु प्रभृति व्यक्तियों में भी परस्पर भेद रहने के कारण उन्हें प्रत्यक्ष देखनेवाले योगियों को उनमें से प्रत्येक में परस्पर व्यावृत्ति-बुद्धि होनी ही चाहिए। परमाणु प्रभृति में योगियों के इस व्यावृत्तिबुद्धि का कारण उनका परस्पर भेद नहीं हो सकता। क्योंकि स्थाणु प्रभृति में पुरुषादि का भेद उपलब्ध होने पर 'अयं स्थाणुः पुरुषो वा' इत्यादि संशय ही होते हैं । योगियों की उन व्यावृत्ति-बुद्धियों का कोई दूसरा कारण उपलब्ध नहीं होता है, क्योंकि परमाणु प्रभृति की आकृति और क्रिया प्रभृति समान है, ( अतः उनसे यहाँ व्यावृत्ति-बुद्धि उपपन्न नहीं हो सकती)। बिना विशेष कारण के प्रतीतियों की विभिन्नता कहीं उपलब्ध नहीं होती। तस्मात् योगियों की उन व्यावृत्ति-बुद्धियों के जो कारण हैं वे ही 'विशेष' हैं। ( इस प्रसङ्ग में यह अनुमान भी है कि) जिस प्रकार परसामान्य और विशेष (अपर सामान्य ) से युक्त होने के कारण किसी व्यक्ति की प्रत्यभिज्ञा के द्वारा घटादि ज्ञात होते हैं, उसी प्रकार एवं उन्हीं हेतुओं से विभिन्न स्थानों और विभिन्न समयों में देखे गये परमाणु भी किसी को प्रत्यभिज्ञा के द्वारा ही ज्ञात होते हैं। किसी 'विशेष' ज्ञान के बिना पहिले देखी हुई वस्तु का प्रत्यभिज्ञान नहीं हो सकता, अतः परमावादि विषयक प्रत्यभिज्ञानों का जो असाधारण कारण है, वही 'विशेष' है । For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869