Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 831
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७५६ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [सामान्यनिरूपण न्यायकन्दली कारणसामर्थ्यात् । संयोगो ह्यन्यतः समागतस्य भवति, तत्रैवावस्थितस्य वा भवति । तस्माद् विलक्षणस्तु समवायो यत्र यत्रैव पिण्डोत्पत्तौ कारणानि व्याप्रियन्ते, तत्र तत्रैव कारणानां सामर्थ्यात् पिण्डेऽन्यतोऽनागतस्य तत्र स्थितस्यापि सामान्यस्य भवति, वस्तुशक्तेरपर्यनुयोज्यत्वात् । अत्राहः सौगता:-प्रतीयमानेषु भेदेषु मणिसूत्रवदेकस्याकारस्यानुपलम्भात् सामान्यं नास्त्येवेति । तदयुक्तम्, अनेकासु गोव्यक्तिष्वनुभूयमानास्वश्वादिव्यक्तिविलक्षणतया सामान्याकारप्रतीतिसम्भवात् । यदि शाबलेयादिषु परस्परभिन्नेष्वेकमनुवृत्तं न किञ्चिदस्ति, यथा गवाश्वव्यक्तयः परस्परविलक्षणाः संवेद्यन्ते तथा गोव्यक्तयोऽपि संवेद्याः स्युः । यथा वा गोव्यक्तयः सरूपाः प्रतीयन्ते तथा गवाश्वव्यक्तयोऽपि प्रतोयेरन, विशेषाभावात् । नियमेन तु गोव्यक्तयः प्रतीयमानाः सरूपाः स्ववर्गसाधारणहैं ? इसका यह उत्तर है कि व्यक्ति के उत्पादक कारणों के विशेष सामर्थ्य के द्वारा ही गोत्वादि सामान्य अपने ब्यक्तियों के साथ सम्बद्ध होते हैं। संयोग दूसरे देश से आये हुए व्यक्ति का, अथवा उसी स्थान में पहिले से विद्यमान वस्तु का होता है। किन्तु समवाय में संयोग से यह अन्तर है कि जिन जिन देशों में उनके विषयों के उत्पादक कारण अपने कार्य को करने के लिए क्रियाशील होते हैं, उन्हीं उन्हीं देशों में उन्हीं कारणों के विशेष सामर्थ्य के द्वारा उस सामान्य का सम्बन्ध हो जाता है, जो किसी दूसरी जगह से नहीं आता, उसी देश में विद्यमान रहता है । क्योंकि वस्तुओं की स्वाभाविक शक्तियाँ सभी अभियोगों के बाहर हैं । इस प्रसङ्ग में बौद्ध लोगों का कहना है कि (प्र०) सामान्य नाम को कोई वस्तु नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार मणियों के विभिन्न होते हुए भी उन सबों में एक माला का व्यवहार इसलिए होता है कि सबों को एक व्यवहार में लानेवाला सूत्र नाम का एक पदार्थ है, उस प्रकार विभिन्न गोव्यक्तिओं में एक प्रकार के व्यवहार के कारण गौओं से भिन्न किसी वस्तु की उपलब्धि नहीं होती। ( उ.) किन्तु उन लोगों का यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि सभी गोव्यक्ति में 'ये गो हैं' इस एक प्रकार की प्रतीति होती है, जो अश्वादि व्यक्तियों में नहीं होती है। यदि परस्पर विभिन्न शाबलेय (बाहुलेय ) प्रभृति सभी गोव्यकित में समान रूप से रहनेवाली कोई वस्तु नहीं हैं, तो फिर जिस प्रकार गो और अश्व दोनों परस्पर विभिन्न रूप में प्रतीत होते हैं, उसी प्रकार सभी गोव्यक्ति भी परस्पर विभिन्न रूप में ही प्रतीत होंगी। अथवा जिस प्रकार सभी गोव्यक्ति की प्रतीति एक रूप से होती है, उसी प्रकार गोव्यक्तियों और अश्वव्यक्तियों की प्रतीतियाँ भी एक रूप से होंगी, क्योंकि स्थितियों में अन्तर का कोई कारण नहीं है। किन्तु नियमतः सभी गोव्यक्ति एक ही आकार से प्रतीत होती हैं, अतः अश्वादि सभी व्यक्तियों में न रहनेवाले एवं सभी गोव्यक्तियों For Private And Personal

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