Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 829
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७५४ न्यायकन्दली संवलित प्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् कारण सामग्री नियमाच्च स्वविषय सर्वगतानि । अन्तराले च संयोगसमवायवृन्यभावादव्यपदेश्यानीति । इति प्रशस्तपादभाष्ये सामान्यपदार्थः समाप्तः । 1:0:1 Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 1:0:1 न्यायकन्दली [ सामान्यनिरूपण नियमित रूप से समान कारणों से उत्पन्न होना इन दोनों से समझते हैं कि सामान्य अपने सभी आश्रयों में समानरूप से रहता है । ( कार्योत्पत्ति के ) बीच के द्रव्यों में उस कार्य में रहनेवाले सामान्य का न संयोग सम्बन्ध है, न समवाय सम्बन्ध, अतः उनमें सामान्य का व्यवहार नहीं होता । अतः ( सन्निहित होने पर भी उनमें वह नहीं रहता है ) । प्रशस्तपाद भाष्य का सामान्यनिरूपण समाप्त हुआ । गोत्वस्य व्यञ्जकः, घटत्वस्य, तथाप्युपलक्षणस्याभिव्यञ्जकस्यावयवसंस्थान विशेषस्य नियमान्नियतत्वात् पिण्डोत्पादक कारणसामग्री नियमाच्च स्वविषये सर्वत्र समवयन्ति नान्यत्रेति । एतदुक्तं भवति - सास्नादिसंस्थानविशेषो केसरादिसंस्थानविशेषोऽश्वत्वस्य, विशिष्टग्रीवादिसंस्थान विशेषो प्रतीतिनियमात् । एते च संस्थानविशेषा न सर्वेषु पिण्डेषु साधारणाः, अपि तु प्रतिनियतेषु भवन्ति । तत्र यद्यपि सर्वं सामान्यं सर्वत्रोपजायमानेन स्वविषयेणैव पिण्डान्तरेणापि सम्बद्ध क्षमते, तथापि यस्याभिव्यञ्जकं यत्र यद्यपि सामान्य जहाँ तहाँ उत्पन्न पिण्डों के साथ सम्बद्ध होने के कारण 'अपरिच्छिन्न देश' में अर्थात् अनियत देशों में रहनेवाले हैं। फिर भी उसके 'उपलक्षण' अर्थात् अभिव्यञ्जक जो अवयवों के विशेष प्रकार के संयोग हैं, वे नियमित हैं । इस नियम के कारण और आश्रयीभूत पिण्डों के कारणों के नियमित होने से वे अपने ही विषयों में समवाय सम्बन्ध से सम्बद्ध होते हैं । इससे यह अभिप्राय निकला कि सास्ता प्रभृति अवयत्रों का विशेष प्रकार का संयोग ( संस्थान) ही गोत्व जाति की अभिव्यक्ति का कारण है । एवं केसर प्रभृति संस्थान अश्वत्व जाति अभिव्यक्ति का हेतु । इसी प्रकार विशेष प्रकार के ग्रीवादि संस्थान घटत्व के ज्ञापक हैं, क्योंकि नियमित रूप से तत्तत् संस्थान से युक्त पिण्डों में ही तत्तत् सामान्य का प्रतिभास होता है । ये कथित संस्थान सभी पिण्डों में समान रूप से नहीं रहते, किन्तु अपने नियमित पिण्डों में ही रहते हैं । इस प्रकार सभी सामान्य जिस प्रकार सभी जगह उत्पन्न होनेवाले अपने व्यक्तियों के साथ सम्बद्ध होंगे, उसी प्रकार दूसरे पिण्डों के साथ For Private And Personal १. यहाँ 'स्वविषयेणैव' के स्थान में 'स्वविषयेणेव ' ऐसा इवकार' घटित पाठ ही उचित जान पड़ता है । अतः तदनुसार ही अनुवाद किया गया है ।

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