Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 835
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७६० ग्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [सामान्यनिरूपण न्यायकन्दली संसर्गविषयः। तदध्यवसाय एव स्वलक्षणाध्यवसायः, तदात्मतया तस्य समारोपात् । अन्यव्यावृत्तिस्वभावं भावाभावसाधारणं चेदम्, गौरस्ति नास्तीति प्रयोगात् । भावात्मकत्वे ह्यस्य गौरस्तोति प्रयोगासम्भवः, पुनरुक्तत्वात् । नास्तीति च न प्रयुज्यते, विरोधात् । एवं तस्याभावात्मकत्वे नास्तीति पुनरुक्तम्, अस्तीति विरुध्यते । यथोक्तम् घटो नास्तीति वक्तव्यं सन्नेव हि यतो घटः। नास्तीत्यपि न वक्तव्यं विरोधात् सदसत्त्वयोः ॥ इति । एतस्मादेव च भिन्नानामपि व्यक्तीनामेकतावभासः । इदं हि सर्वेषामेव विकल्पानां विषयोऽस्यैकत्वाद् विकल्पानामप्येकत्वम् । तेषामेकत्वाच्च तत्काका ( सङ्क्तरूप ) संसर्ग होता है। शब्द से उसी का व्यवहार होता है, एवं उसी का बाह्य अर्थ रूप में भी व्यवहार होता है, उसे ही 'स्वलक्षण' भी कहते हैं। इसी 'स्वलक्षणाध्यवसाय' रूप से उसका आरोप होता है। इस ( अर्द्धपञ्चमाकार ) का अध्यवसाय ही स्वलक्षणाध्यवसाय' कहा जाता है, क्योंकि विकल्प का इसी रूप से आरोप होता है । यह ( अपोह) अन्यव्यावृत्ति स्वभाव का है, अर्थात् इसका स्वभाव है कि अपने विषय को अन्यों से भिन्न रूप में समझावे । एवं भाव और अभाव दोनों प्रकार की वस्तुओं में समान रूप से रहना भी इसका स्वभाव है। क्योंकि 'गौरस्ति' और 'गौर्नास्ति' इन दोनों ही प्रकार के प्रयोग होते हैं। यदि यह केवल भाव रूप ही होता, तो फिर पुनरुक्ति के कारण 'गौरस्ति' यह प्रयोग सम्भव न होता। 'गौर्नास्ति' यह प्रयोग भी नहीं हो सकता, क्योंकि अस्तित्व और नास्तित्व दोनों परस्पर विरुद्ध हैं। इसी प्रकार इसको केवल अभाव रूप ही मानें तो 'गौर्नास्ति' यह प्रयोग पुनरुक्ति के कारण नहीं हो सकेगा और 'गौरस्ति' यह प्रयोग विरोध के कारण असम्भव होगा । जैसा कि आचार्यों ने कहा है कि १“यतः घट सत् है अत: 'घटोऽस्ति' यह प्रयोग ठीक नहीं है, ( क्योंकि इससे पुनरुक्ति होती है)। 'घटो नास्ति' यह प्रयोग भी ठीक नहीं है, क्योंकि ( घटशब्द से बोध्य ) सत्त्व और ( नास्तिशब्द से बोध्य ) असत्त्व दोनों परस्पर विरोधी हैं।" ___इसी ( अर्द्धपञ्चमाकार ) से विभिन्न व्यक्तियों में एक आकार की प्रतीति होती है। यही सभी विकल्पों का विषय है, और इसी की एकता से सभी विकल्पों में भी एकता की प्रतीति होती है। विकल्पों के एकत्व से ही उसके कारणीभूत एवं प्रत्येक पिण्ड १. यह श्लोक मुद्रित पुस्तक में 'घटो नास्तीति वक्तव्यम्' इस प्रकार से मुद्रित है। किन्तु विषय विवेचन की दृष्टि से 'घटोऽस्तीति न वक्तव्यम्' ऐसा पाठ उचित जान पड़ता है। यह पाठ पाठान्तरों की सूची में भी है। अतः तदनुसार ही अनुवाद किया गया है। For Private And Personal

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