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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[ कर्मनिरूपण
प्रशस्तपादभाष्यम् ततः शरीराद् बहिरपगतं ताभ्यामेव धर्माधर्माभ्यां समुत्पन्नेनातिवाहिकशरीरेण सम्बध्यते, तत्संक्रान्तं च स्वर्ग नरकं वा गत्वा आशयानुरूपेण शरीरेण सम्बद्धयते, तत्संयोगार्थ कर्मोपसर्पणमिति । शरीर से निकला हआ मन उन्ही धर्मों और अबों से उत्पन्न आतिवाहिक शरीर के साथ सम्बद्ध होता है । उस शरीर के साथ सम्बद्ध होकर ही मन स्वर्ग या नरक को जाता है और वहाँ जाकर स्वर्ग या नरक के भोगजनक धर्म और अधर्म के अनुरूप दूसरे शरीर के नाथ सम्बद्ध
न्यायकन्दली
अपसर्पणकर्मोत्पत्तावात्ममनःसंयोगोऽसमवायिकारणम. मनः समवायिकारणम्, लब्धवृत्ती धर्माधमौ निमित्तकारणम् । ततस्तदनन्तरं तन्मनो मृतशरीराद् बहिनिर्गतं ताभ्यामेव लब्धवृत्तिभ्यां धर्भाधर्माभ्यां सकाशादुत्पन्नेनातिवाहिकशरीरेण सम्बद्धयते । तत्संकान्तं तदातिवाहिकशरीरसंक्रान्तं मनः स्वर्ग नरकं वा गच्छति । तत्र गत्वा आशयानुरूपेण कर्मानुरूपेण शरीरेण सम्बद्धयते । स्वर्गे नरके वा यदुपजातं शरीरं तत्र तावन्मनःसम्बन्धेन भवितव्यम्, अन्यथा तस्मिन् देशे भोगासम्भवात् । न चात्मवदगत्वैव जनसो देहान्तरसम्बन्धोऽस्ति, अव्यापकत्वात् । गमनं च तस्यैतावद् दूरं केवलस्य न सम्भवति, महाप्रलया. नन्तरावस्थाव्यतिरेकेणारीरस्य मनसः कर्माभावात् । तस्मान्मृतशरीरप्रत्यासन्नमदृष्टवशादुपजातक्रियेरणुभिर्द्वघणुकादिप्रक्कमेणारब्धमतिसूक्ष्ममनुपलब्धियोग्यं
आत्मा और मन का संयोग मन की इस . अपसपण किया का असमवायिकारण है, एवं मन समवायिका रण है और कार्यक्षम धर्म और अधर्म उसके निमित्तकारण हैं। 'तत.' अर्थात् इसके बाद पृत शरीर से निकला हुआ वही मन अपने कार्य के उत्पादन में पूर्णक्षम उन्हीं धर्म और अधर्म से उत्पन्न आतिवाहिक शरीर के स य सम्बद्ध होता है । तत्सकान्तम्' अर्थात् आतिवाहिक शरीर के साथ सम्बद्ध मन स्वर्ग या नरक में चल! जाता है । वहाँ जाकर आशय के अनुरूप अर्थात् अपने कर्मों के अनुसार फल भोग के अनुरूप शरीर के साथ सम्बद्ध हो जाता है । शरीर की उत्पत्ति स्वर्ग में हो या नरक में । उस में मन का सम्बन्ध रहना आवश्यक है, उसके बिना स्वर्गादि देशों में भी भोग नहीं हो सकता । जिस .. कार विभु होने के कारण आत्मा स्वर्गादि देशों में न जाकर भी उन देशों में उत्पन्न शरीरों के साथ सम्बद्ध हो जाता है, उसी प्रकार से मन को बिना वहाँ गये उन दूसरे शरीरों के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता, क्योंकि मन विभु नहीं है। इतनी दूर ( शरीर से असम्बद्ध ) केवल मन का जाना भी सम्भव नहीं है, क्योंकि महाप्रलय को
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