Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 823
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७४८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [सामान्यनिरूपण प्रशस्तपादभाष्यम् लक्षणभेदादेषां द्रव्यगुणकर्मभ्यः पदार्थान्तरत्वं सिद्धम् । अत एव च नित्यत्वम् । द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों से इसका स्वरूप (लक्षण) भिन्न है, अतः सिद्ध होता है कि यह सामान्य (द्रव्यादि की तरह) दूसरा ही (स्वतन्त्र) पदार्थ है। यतः लक्षणभेद के कारण द्रव्यादि से यह भिन्न है, अत: यह सिद्ध होता है, सामान्य नित्य है। न्यायकन्दली द्रव्यत्वादीनि द्रव्यादिव्यतिरिक्तानि न भवन्ति, अतस्तेषां पृथक् कार्यनिरूपणमन्याय्यमित्यत्राह--लक्षणभेदादिति । अनुगताकारबुद्धिवेद्यानि द्रव्य. त्वादीनि, व्यावृत्तिबुद्धिवेद्याश्च द्रव्यादिव्यक्तयः, तस्मादेषां द्रव्यत्वादीनां लक्षणभेदात् प्रतीतिभेदाद् द्रव्यगुणकर्मभ्यः पदार्थान्तरत्वम् । अत एव च नित्यत्वम् । यत एव सामान्यस्य द्रव्यादिभ्यो भेदः, अत एव नित्यत्वम् । द्रव्याद्य. भेदे सामान्यस्य द्रव्यादिविनाशे विनाशस्तदुत्पादे चोत्पादः स्यात्, भेदे तु नायं विधिरवतिष्ठत इति । __ अत्रके वदन्ति । भिन्नेष्वनुगता बुद्धिः सामान्य व्यवस्थापयति । सा च प्रतिपिण्डं दण्डपुरुषाविव न स्वातन्त्र्येण सामान्यविशेषलक्षणे को दूसरी जाति के आश्रयीभूत पदार्थों से तो अलग करते ही है, केवल इतने ही सादृश्य के कारण द्रव्यत्वादि सामान्यों में भी विशेष' शब्द का लाक्षणिक प्रयोग होता है। किसी सम्प्रदाय का मत है कि द्रव्यत्वादि जातियाँ आश्रयीभूत द्रव्यादि व्यक्तियों से भिन्न नहीं हैं, अतः उनका अलग से निरूपण करना उचित नहीं है। इसी आक्षेप का समाधान 'लक्षणभेदात्' इत्यादि से किया गया है । अनुगत आकार की प्रतीति के द्वारा ही द्रव्यत्वादि सामान्य समझे जाते हैं। द्रव्यादि व्यक्तियों का बोध व्यावृत्तिबुद्धि से होता है । तस्मात् एषाम्' अर्थात् द्रव्यत्वादि सामान्यों के लक्षण (द्रव्यादि व्यक्तियों के) लक्षण से भिन्न हैं, अत एव द्रव्यत्यादि सामान्य द्रव्यादि व्यक्तियों से अलग स्वतन्त्र पदार्थ हैं। अत एव व नित्यत्वम्' अर्थात् द्रव्यत्वादि सामान्य यदि व्यादि व्यक्तियों से अभिन्न होते, तो फिर द्रव्यादि के विनाश से उनका भी विनाश होता, एवं उनकी उत्पत्ति से उनकी भी उत्पत्ति होती। यदि द्रव्यत्वादि सामान्य और द्रव्यादि व्यक्ति इन दोनों को भिन्न पदार्थ मान लेते हैं, तो यह स्थिति नहीं उत्पन्न होती है, ( अतः उनको नित्य मानते हैं )। इसी प्रसङ्ग में किसी सम्प्रदाय के लोगों का कहना है कि (प्र.) विभिन्न व्यक्तियों में एक आकार की बुद्धि ( अनुवृत्तिप्रत्यय ) से ही सामान्य की सिद्धि की जाती है, किन्तु For Private And Personal

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