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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् संस्कारादतीतज्ञानप्रबन्धप्रत्यवेक्षणाद्
जनिताच्च तत् सामान्यमिति ।
तत्र
परस्पर विशिष्टेषु
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७४३
यदनुगतमस्ति
सत्तासामान्यं परमनुवृत्तिप्रत्ययकारणमेव । यथा
चर्मवस्त्र कम्बलादिष्वेकस्मान्नीलद्रव्याभिसम्बन्धान्नीलं
आकार की बुद्धि का कारण है । ( प्र० ) यह किस प्रकार समझते हैं ( कि अनेक वस्तुओं में एक ही सामान्य रहता है ) | ( उ० ) प्रथमतः अनेक पिण्डों में से प्रत्येक में सामान्य का ज्ञान होता है । यही ज्ञान जब बार बार होता है ( जिसे अभ्यासप्रत्यय कहते हैं), तब उससे (दृढतर ) संस्कार उत्पन्न होता है । इस संस्कार से उन ज्ञान समूहों का स्मरण होता है । इस स्मरण से ही समझते हैं कि इस स्मरण के विषयभूत सभी पिण्डों में अनुगत जो धर्म हं वही सामान्य ' है । इन ( पर और अपर सामान्यों ) में सत्ता नाम का सामान्य केवल
न्यायकन्दली
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भवतीति विशेषः । अनेकवृत्तित्वे सति यदेकद्विबहुष्वात्मस्वरूपानुगमप्रत्ययकारणं तत् सामान्यमिति लक्षणार्थः । एतदेव विवृणोति स्वरूपाभेदेनेति । एकस्मिन् पिण्डे यत् स्वरूपं तत् पिण्डान्तरेऽपि । तस्मादभेदेनाधारेषु प्रबन्धेनानुपरमेण पूर्वपूर्व पिण्डापरित्यागेन वर्तमान सदनुवृत्तिप्रत्ययकारणं स्वरूपानुगमप्रतीतिकारणं सामान्यम् । कथमिति परस्य प्रश्नः । कथमनेकेषु पिण्डेषु सामान्यस्य वृत्तिरवगम्यत इत्यर्थः । उत्तरमाह - प्रतिपिण्डमिति । पिण्डं पिण्डं है, उसी प्रकार दो गोपिडों में भी 'इमौ गावी' या बहुत से गोपिण्डों में भी 'इमे गाव ः ' इत्यादि श्राकार से 'सामान्य' की प्रतीतियाँ होती हैं । द्वित्वादि ( व्यासज्यवृत्ति गुणों ) में ऐसी बात नहीं है। उनकी प्रतोति उनके सभी आश्रयों में ही हो सकती है, तद्घटक किसी एक अभय में नहीं) द्वित्वादि से सामान्य में यही अन्तर है । (सामान्य के लक्षणवाक्य कासार मर्म यह है कि ) जो स्वयं एक होकर भी अनेक वस्तुओं में विद्यमान रहें, एवं ( अपने आश्रयीभूत) एक व्यक्ति में, दो व्यक्तियों अपने स्वरूप के द्वारा समान एवं अनुगत एक आकार के 'सामान्य' है । यही बात 'एनदेव' इत्यादि से कही गयी हैं। उस जाति की दूसरी वस्तु का स्वरूप से अपने सभी आश्रयों में के अपने आश्रय रूप पिण्डों को अनेक बस्तुओं में एक इत्यादि से प्रतिवादी का समझते हैं कि समान रूप के
में
अथवा बहुत से व्यक्तियों में प्रत्यय का कारण हो, वही एक वस्तु का जो स्वरूप है, भी वही स्वरूप है, सभी आश्रयों में अनुगत वह एक ही 'प्रबन्ध से' अर्थात् बिना विराम के फलतः पहिले पहिले बिना छोड़े हुए हो जो 'अनुवृत्तिप्रत्यय' का अर्थात् आकार की प्रतीति का कारण हो वही 'सामान्य' है । 'कथम् ' प्रश्न सचित किया गया है। जिसका अभिप्राय है कि यह कैसे सभी पिण्डों में एक ही जाति है ? प्रतिपिण्डम्' इत्यादि से