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म्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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मुपकारापकारसमर्थं च भवति तदप्यदृष्टकारितम्, यथा सर्गादावणुकर्म, अग्निवाय्वोरूर्ध्व तिर्यग्गमने, महाभूतानां प्रक्षोभणम् । अभिषिक्तानां मणीनां तस्करं प्रति गमनम्, अयसोऽयस्कान्ताभिसर्पणं चेति । इति प्रशस्तपादभाष्ये कर्मपदार्थः समाप्तः ॥
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1:0:1
न्यायकन्दली
[ कर्मनिरूपण
भी अदृष्ट ही है । इसी प्रकार जीवों के उपकार या अपकार करनेवाली महाभूतों की जिन कियाओं के कारणों का बोध प्रत्यक्ष या अनुमान से नहीं होता है, वे सभी क्रियायें अदृष्ट से ही उत्पन्न होती हैं । जैसे कि सृष्टि के आदि में परमाणुओं की क्रियायें एवं अग्नि और वायु की ऊर्ध्वगति रूप क्रियायें, भूगोलकों की चलन क्रियायें एवं अभिमन्त्रित मणि जो चोर की ओर जाती है, या सामान्य लोह चुम्बकी ओर जो जाता है, ये सभी क्रियायें भी अदृष्ट से ही उत्पन्न होती हैं ।
प्रशस्तपादभाष्य में कर्मपदार्थ का निरूपण समाप्त हुआ ।
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योगिनां च बहिरुद्रेचितस्य बहिर्निःसारितस्य मनसोऽभिप्रेतदेशगमनं प्रत्यागमनं च । तथा सर्गकाले प्रत्यग्रेण शरीरेण सम्बन्धार्थं मनःकर्मादृष्टकारितम् । न केवलमेतावत् सर्वमन्यदपि महाभूतेषु यत् प्रत्यक्षानुमानाभ्यामनुपलभ्यमानकारणमुपकारापकारसमर्थं तदप्यदृष्टकारितम्, सर्गादावणुकर्म, अग्निवाय्वोर्यथासंख्यमुध्वं तिर्यग्गमने, महाभूतानां भूगोलकादीनां
यथा
'योगिनां च बहिरुद्रेचितस्य' अर्थात् योगी लोग जब अपने मन को पुनः अपने शरीर में लौट आने के लिए अभिप्रेत देश में जाने के लिए भेजते हैं ( उस समय ) उनके मन की क्रियायें अदृष्ट से उत्पन्न होती हैं । मन की केवल वे ही क्रियायें नहीं, 'अन्यदपि महाभूतेषु यत्प्रत्यक्षानुमानाभ्यामनुपलभ्यमानकारणमुपकारापकारसमर्थं तदप्यदृष्टकारितम्' ( अर्थात् पृथिव्यादि महाभूतों की ही ) अन्य उन क्रियाओं की उत्पत्ति भी अदृष्ट से हो माननी पड़ेगी, जिनके कारणों की उपलब्धि प्रत्यक्ष या अनुमान के द्वारा नहीं होती है. एवं जिनसे जिस किसी का कुछ उपकार या अपकार होता है । 'यथा सर्गादावणुकर्म, अग्निवाय्वोर्यथासंख्य मूर्ध्वतिय्र्यग्गमने' जैसे सृष्टि के प्रथम क्षण की परमाणु की क्रिया एवं अग्नि की ऊपर की ओर जलने की क्रिया अथवा वायु की टेढ़े-मेढ़े चलने की क्रिया ( अदृष्ट से 'महाभूतानाम्' अर्थात् भूगोल प्रभृति का 'प्रक्षोभण' अर्थात् चलन, समय 'अभिषिक्तानां मणीनां तस्करं प्रति गमनम् अर्थात् उपयुक्त
उत्पन्न होती हैं ) । चोरों की परीक्षा के मन्त्र से अभिषिक्त