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-७२७
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् वेगापेक्षो यः संयोगविशेषो 'विभागहेतोरेकस्य कर्मणः कारणं सोऽभिधातः । तस्मादपि चतुर्षु महाभूतेषु कर्म भवति, यथा पाषाणादिषु निष्ठुरे वस्तुन्यभिपतितेषु, तथा पादादिभिनुद्यमानायामभिहन्यमानायां वा। पङ्काख्यायां पृथिव्यां य: संयोगो नोदनाभिघातयोरन्यतरापेक्ष उभयापेक्षो वा स संयुक्तसंयोगः, तस्मादपि पृथिव्यादिषु कर्म भवति । ये च प्रदेशा न नुद्यन्ते नाप्यभिहन्यन्ते तेष्वपि कर्म जायते ।
अभिघात' उस विशेष प्रकार के संयोग का नाम है जो वेग की सहायता से विभाग को उत्पन्न करनेवाले कर्म का कारण हो। अभिघात नाम के संयोग से भी चारों महाभूतों में क्रियाओं की उत्पत्ति होती है। जैसे कि पत्थर प्रभृति कठिन द्रव्यों पर गिरे हुए द्रव्यों में ( क्रिया की उत्पत्ति होती है ) एवं पैर प्रभृति से केवल छुये जाने पर या अभिहत होने पर पङ्क नाम की पृथिवी में ( कथित ) नोदन और अभिघात नाम के दोनों संयोगों से या दोनों में से किसी एक संयोग से जिस संयोग की उत्पत्ति होती है, उसे 'संयुक्तसंयोग' कहते हैं। इस सयुक्तसंयोग से भी पृथिव्यादि भूतों में क्रिया की उत्पत्ति होती है। जो प्रदेश किसी से छुये नहीं जाते, या
न्यायकन्दली वेगापेक्षो यः सयोग एकस्य विभागकृतः कर्मणः कारणं सोऽभिघातः, अभिघात्याभिघातकयोः परस्परविभागो यतः कर्मणो जायते तस्यैवैकस्य हेतुर्यः संयोगविशेषः सोऽभिघातः। तस्मादपि चतुर्षु महाभूतेषु कर्म भवति । यथा पाषाणादिषु निष्ठुरे वस्तुन्यभिपतितेषु। नोदनं परस्पराविभागहेतो. रेवैकस्य कर्मणः कारणं न परस्परविभागहेतोः, एवमभिघातोऽपि परस्परविभागहेतोरेवैकस्य कर्मणः कारणं न परस्पराविभागहेतोरिदमुक्तमेकस्य कर्मणः कारणम् ।
"वेगापेक्षो यः संयोग एकम्य f भागकृतः कर्मण: कारणं सोऽभिधातः" अर्थात् अभिघात्य और अभिघातक इन दोनों में परस्पर विभाग की उत्पत्ति जिस एक क्रिया से हो, उस क्रिया का कारणी धुत विशेष प्रकार का संयोग ही 'अभिथात' है । 'तस्मादपि चतुषु महाभूतेषु कर्म भवति, यथा पाणादिषु निष्ठुरे वस्तुन्यभिपतितेषु' ( जिस प्रकार ) परस्पर विभाग के अकारणीभूत एक क्रिया का ही कारण 'नोदन' है, परस्पर विभाग के कारणीभूत एक क्रिया का कारण नोदन नहीं है। उसी प्रकार ( ठीक उससे विपरीत ) अभिघात भी परस्पर विभाग के हेतुभूत एक क्रिया का ही कारण है, वह परस्पर विभाग के अहेतुभूत एक क्रिया का कारण नहीं है।
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