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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
तमेव संस्कारमपेक्षमाणाद् धनुर्ज्या संयोगाद् ज्यायां शरे च कर्मोत्पद्यते । तत् स्वकारणापेक्षं ज्यायां संस्कारं करोति । तमपेक्षमाण इषुज्यासंयोगो नोदनम् तस्मादिषावाद्यं कर्म नोदनापेक्षमिपौ संस्कारमारभते । तस्मात् संस्कारानोदनसहायात् तावत् कर्माणि भवन्ति यावदिषुज्याविभागः, विभागान्निवृत्ते नोदने कर्माण्युत्तरोत्तराणीषु
।
में रहनेवाला ( स्थितिस्थापक ) संस्कार नमे हुये उस धनुष को पहिली अवस्था में ले आता है । उसी समय इस स्थितिस्थापक संस्कार एवं धनुष और डोरी के संयोग इन दोनों से तीर में क्रिया उत्पन्न होती है । यह क्रिया अपने कारणीभूत ( धनुष और डोरी के संयोग ) के साहाय्य से डोरी में ( वेगाख्य ) संस्कार को उत्पन्न करती है । इस संस्कार के द्वारा तीर एवं डोरी इन दोनों में 'नोदन' नाम के संयोग की उत्पत्ति होती है । इस नोदन संयोग के साहाय्य से तीर की पहिली क्रिया तीर में ( वेगाख्य ) संस्कार को उत्पन्न करती है । यह संस्कार उक्त नोदनसंयोग की सहायता से तब तक क्रियाओं को उत्पन्न करता रहता है, जब तक डोरी और तीर का
न्याय कन्दली
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ततो विभागाच्छ्रगुणाङ्गुलिसंयोगविनाशस्तस्मिन् संयोगे विनष्टे प्रतिबन्धकाभावाद् यदा धनुषि वर्तमानः स्थितिस्थापकः संस्कारो मण्डलीभूतं धनुर्यथावस्थितं स्थापयति । तं संस्कारमपेक्षमाणाद् धनुर्ज्या संयोगाद् ज्यायां शरे च कर्मोत्पद्यते । तत् कर्म स्वकारणापेक्षं धनुर्ज्या संयोगापेक्षं ज्यायां संस्कारं वेगाख्यं करोति तं च संस्कारमपेक्षमाण इषुज्यासंयोगो नोदनम्, नोद्यस्येपोर्नोदकस्य गुणस्य सहगमनहेतुत्वात् । तस्माद् नोदनादिषावाद्यं कर्म संस्कारमारभते । तस्मात् संस्काराद् नोदनसहायात् तावत् कर्माणि भवन्ति यावदिषुज्याविभागः । साथ अङ्गुली का संयोग इन दोनों संयोगों का विनाश हो जाता है । इन संयोगों के विनष्ट होने पर जिस समय धनुष में रहनेवाला स्थितिस्थापक संस्कार किसी प्रतिबन्धक के न रहने के कारण नमे हुये धनुष को अपनी पहिली अवस्था में ले आता है, ( उसी समय ) इस स्थितिस्थापक संस्कार के साहाय्य से ही धनुष और डोरी के संयोग के द्वारा डोरी में और शर में क्रिया उत्पन्न होती है । 'तत्' अर्थात् वह कर्म 'स्वकारणापेक्षम्' अर्थात् धनुष और डोरी के संयोग का साहाय्य पाकर डोरी में संस्कार को अर्थात् वेग नाम के संस्कार को उत्पन्न करता है । उसी वेग से तीर और डोरी का 'नोदन' संयोग उत्पन्न होता है, ( वह संयोग नोदन रूप इसलिए है कि ) नोद्य ( प्रेर्य ) जो तीर और नोदक ( प्रेरक ) जो डोरी इन दोनों में साथ साथ गमन क्रिया के उत्पादन का हेतु है । इस नोदन संयोग के साहाय्य से पहिली क्रिया तीर में संस्कार को उत्पन्न करती