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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् तमेव संस्कारमपेक्षमाणाद् धनुर्ज्या संयोगाद् ज्यायां शरे च कर्मोत्पद्यते । तत् स्वकारणापेक्षं ज्यायां संस्कारं करोति । तमपेक्षमाण इषुज्यासंयोगो नोदनम् तस्मादिषावाद्यं कर्म नोदनापेक्षमिपौ संस्कारमारभते । तस्मात् संस्कारानोदनसहायात् तावत् कर्माणि भवन्ति यावदिषुज्याविभागः, विभागान्निवृत्ते नोदने कर्माण्युत्तरोत्तराणीषु । में रहनेवाला ( स्थितिस्थापक ) संस्कार नमे हुये उस धनुष को पहिली अवस्था में ले आता है । उसी समय इस स्थितिस्थापक संस्कार एवं धनुष और डोरी के संयोग इन दोनों से तीर में क्रिया उत्पन्न होती है । यह क्रिया अपने कारणीभूत ( धनुष और डोरी के संयोग ) के साहाय्य से डोरी में ( वेगाख्य ) संस्कार को उत्पन्न करती है । इस संस्कार के द्वारा तीर एवं डोरी इन दोनों में 'नोदन' नाम के संयोग की उत्पत्ति होती है । इस नोदन संयोग के साहाय्य से तीर की पहिली क्रिया तीर में ( वेगाख्य ) संस्कार को उत्पन्न करती है । यह संस्कार उक्त नोदनसंयोग की सहायता से तब तक क्रियाओं को उत्पन्न करता रहता है, जब तक डोरी और तीर का न्याय कन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal ७२३ ततो विभागाच्छ्रगुणाङ्गुलिसंयोगविनाशस्तस्मिन् संयोगे विनष्टे प्रतिबन्धकाभावाद् यदा धनुषि वर्तमानः स्थितिस्थापकः संस्कारो मण्डलीभूतं धनुर्यथावस्थितं स्थापयति । तं संस्कारमपेक्षमाणाद् धनुर्ज्या संयोगाद् ज्यायां शरे च कर्मोत्पद्यते । तत् कर्म स्वकारणापेक्षं धनुर्ज्या संयोगापेक्षं ज्यायां संस्कारं वेगाख्यं करोति तं च संस्कारमपेक्षमाण इषुज्यासंयोगो नोदनम्, नोद्यस्येपोर्नोदकस्य गुणस्य सहगमनहेतुत्वात् । तस्माद् नोदनादिषावाद्यं कर्म संस्कारमारभते । तस्मात् संस्काराद् नोदनसहायात् तावत् कर्माणि भवन्ति यावदिषुज्याविभागः । साथ अङ्गुली का संयोग इन दोनों संयोगों का विनाश हो जाता है । इन संयोगों के विनष्ट होने पर जिस समय धनुष में रहनेवाला स्थितिस्थापक संस्कार किसी प्रतिबन्धक के न रहने के कारण नमे हुये धनुष को अपनी पहिली अवस्था में ले आता है, ( उसी समय ) इस स्थितिस्थापक संस्कार के साहाय्य से ही धनुष और डोरी के संयोग के द्वारा डोरी में और शर में क्रिया उत्पन्न होती है । 'तत्' अर्थात् वह कर्म 'स्वकारणापेक्षम्' अर्थात् धनुष और डोरी के संयोग का साहाय्य पाकर डोरी में संस्कार को अर्थात् वेग नाम के संस्कार को उत्पन्न करता है । उसी वेग से तीर और डोरी का 'नोदन' संयोग उत्पन्न होता है, ( वह संयोग नोदन रूप इसलिए है कि ) नोद्य ( प्रेर्य ) जो तीर और नोदक ( प्रेरक ) जो डोरी इन दोनों में साथ साथ गमन क्रिया के उत्पादन का हेतु है । इस नोदन संयोग के साहाय्य से पहिली क्रिया तीर में संस्कार को उत्पन्न करती
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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