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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् सशरां ज्यां मुष्टिना गृहीत्वा आकर्षणेच्छां करोति, सज्येष्वाकर्षयाम्येतद् धनुरिति । तदनन्तरं प्रयत्नस्तमपेक्षमाणादात्महस्तसंयोगादाकर्षणकर्म हस्ते यदैवोत्पद्यते तदैव तमेव प्रयत्नमपेक्षमाणाद्धस्तज्याशरसंयोगाद् ज्यायां शरे च कर्म, प्रयत्नविशिष्टहस्तज्याशरसंयोगमपेक्ष. माणाम्यां ज्याकोटिसंयोगाभ्यां कर्मणी भवतो धनुष्कोटयोरित्येतत धनूषादि चालन में निपुण व्यक्ति जिस समय बायें हाथ से धनुषादि को जोर से पकड़ कर दाहिने हाथ से उसमें तीर को लगाता है और तीर सहित धनुष की डोरी को मुट्ठी से पकड़ कर उसे खींचने की इस प्रकार की इच्छा करता है कि मैं शर और डोरी सहित धनुष को खीचूँ' उसके बाद प्रयत्न की उत्पत्ति होती है। आत्मा और हाथ के संयोग एवं उक्त प्रयत्न इन दोनों से जिस समय आकर्षणात्मक क्रिया की उत्पत्ति होती है, उसी समय उस प्रयत्न और हाथ का डोरी से संयोग और डोरी का तीर के साथ संयोग इन दोनों संयोग प्रभूति कारणों से डोरी और तीर दोनों में ही क्रियायें उत्पन्न होती हैं। धनुष के दोनों कोणों के साथ डोरी के दोनों संयोगों से धनुष के दोनों कोणों में दो क्रियाओं की उत्पत्ति होती है। इन दोनों क्रियाओं की उत्पत्ति में प्रयत्न से युक्त हाथ के साथ डोरी और तीर के
न्यायकन्दली ज्यां मुष्टिना गृहीत्वा इच्छां करोति सज्येष्वाकर्षयाम्येतद् धनुरिति । ज्येति धनुर्गुणस्याख्या, इषुरिति शरस्याभिधानम्। ज्या च इषुश्च ज्येष, सह ज्येषुभ्यां वर्तत इति सज्येषु धनुरेतदाकर्षयामीतीच्छाया आकारो दर्शितः । तदनन्तरं प्रयत्नस्तमपेक्षमाणादात्महस्तसंयोगादाकर्षणकर्म हस्ते यदैवोत्पद्यते, तदैव तं प्रयत्नमपेक्षमाणाद्धस्तज्याशरसंयोगाद् ज्यायां शरे च कर्म हस्तशर. संयोगात्। प्रयत्नविशिष्टज्याहस्तसयोगमपेक्षमाणाभ्यां ज्याकोटिसंयोगाभ्यां
जो पुरुष अस्त्र चलाने का अभ्यास किया हो वही पुरुष 'कृतव्यायामः' शब्द से अभिप्रेत है । 'वामेन करेण धनुर्विष्टभ्य' अर्थात् वह जब बायें हाथ से धनुष को दृढ़तापूर्वक पकड़कर 'दक्षिणेन शरं सन्धाय' अर्थात् धनुष की डोरी में तीर को लगा कर, 'सशरा ज्याम्' अर्थात् तीर में लगी हुई डोरी को, 'मुष्टिना गृहीत्वा' अर्थात् मुट्ठी से पकड़ कर इच्छा करता है कि 'सज्येष्वाकर्षयाम्येतद्धनुरिति' धनुष की डोरी का नाम 'ज्या' है। 'इषु' शब्द शर (तीर ) का वाचक है। 'सज्येषुधनुः' यह शब्द 'ज्या च इषुश्च ज्येषू, सह ज्येषुभ्यां वर्तत इति सज्येषु धनुः' इस प्रकार की व्युत्पत्ति से निष्पन्न है । 'एतदाकर्षयामि' इस वाक्य के द्वारा प्रकृत इच्छा का आकार दिखलाया गया है । 'तदनन्तरं प्रयत्नस्तमपेक्षमाणादात्महस्तसंयोगादाकर्षणकर्म हस्तशरसंयोगात्, प्रयत्न. विशिष्टज्याहस्तसंयोगमपेक्षमाणाभ्यां ज्याकोटिसंयोगाभ्यां कर्मणी धनुष्कोट्योरित्येतत् सर्व
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