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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् नामवरोधार्थ गमनग्रहणं कृतमिति । अन्यथा हि यान्येव चत्वारि विशेषसंज्ञयोक्तानि तान्येव सामान्य विशेषसंज्ञाविषयाणि प्रसज्येरनिति ।
अथवा अस्त्वपरं सामान्यं गमनत्वम् , अनियतदिग्देशन होनेवाले भ्रमण, पतन, स्पन्दनादि क्रियाओं के संग्रह के लिए ही 'गमन' शब्द का उपादान किया गया है। यदि ऐसी बात न होती-भ्रमणादि क्रियाओं के संग्रह के लिए 'गमन' शब्द का उपादान न किया जाता तोजो भी चार कर्म उत्क्षेपण, अपक्षेपण आकुञ्चन, और प्रसारण इन चार नामों से कहे गये हैं, उतने ही कर्म समझे जाते ( फलतः उत्क्षेपणादि चार क्रियाओं से भिन्न भ्रमणादि क्रियाओं का अभाव ही समझा जाता)। अथवा ( कर्मत्व से भिन्न ) गमनत्व नाम का अलग सामान्य ही मान लें, जो अनियमित दिशाओं और अनियत देशों में संयोगों और विभागों के उत्पादक
न्यायकन्दली उत्तरमाह-नेति । उत्क्षेपणादिशब्दैरनवरुद्धा न संगहीता भ्रमणादयः । यदि गमनग्रहणं न कियेत, तदा तेषां कर्मत्वेन संग्रहो न स्यात् । किन्तु विशेषसंज्ञयोद्दिष्टानामुत्क्षेपणादीनामेव परं कर्मत्वसंज्ञाविषयत्वं भवेत् । भ्रमणादयोऽपि च कर्मत्वेन लोकप्रसिद्धाः, अतस्तेषां परिग्रहार्थं पृथग् गमनग्रहणं कृतमिति ग्रन्थार्थः।
अथवा अस्त्वपरं सामान्यं गमनत्वम्, तत् केषु वर्तते, तत्राह-अनियतेति । पक्ति से पूर्वपक्षी यह आक्षेप करते हैं कि (उत्क्षेपणादि की तरह) विशेष नाम के द्वारा गमन का उल्लेख क्यों किया गया है ? 'न' इत्यादि से इसी आक्षेप का उत्तर दिया है। अर्थात् यदि गमन शब्द का उल्लेख ( उत्क्षेपणादि शब्दों को पङ्क्ति में) न किया जाता तो जिन भ्रमणादि क्रियाओं का अवरोध ( संग्रह) उत्क्षेपणादि शब्दों के द्वारा सम्भव नहीं है, उन सबों का कम में संग्रह न हो सकता। (गमनशब्दाघटित उक्त वाक्य से केवल ) उत्क्षेपणादि क्रियाओं का ही संग्रह होता। किन्तु उत्क्षेपणादि से भिन्न भ्रमणादि क्रियाओं में भी कर्मत्व का व्यवहार लोक में होता है । अतः उन सबों के संग्रह के लिए ही गमन' शब्द का उल्लेख किया गया हैं। यही उक्त ( सिद्धान्त भाष्य ) ग्रन्थ का अभिप्राय है ।
_ 'अथवा अस्त्वपर सामान्यं गमनत्वम्' (अर्थात् गमनत्व को भी उत्क्षेपणत्वादि की तरह कर्मत्व का अवान्तर सामान्य ही मान लें, तब भी कोई क्षति नहीं है)। यह गमनत्व (कर्मत्वव्याप्य ) जाति किन कर्मों में रहती है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'अनियत' इत्यादि सन्दर्भ से दिया गया है। तो फिर उत्क्षेपणादि कर्मों में गमन की प्रतीति
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