________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
७१२
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [कर्मनिरूपण
प्रशस्तपादभाष्यम् संयोगविभागकारणेषु भ्रमणादिष्वेव वर्तते, गमनशब्दश्चोत्क्षेपणादिषु भाक्तो द्रष्टव्यः, स्वाश्रयसंयोगविभागकर्तृत्वसामान्यादिति । भ्रमणादि क्रियाओं में ही नियमित रूप से रहता है। भ्रमणादि क्रियाओं में अभिधावृत्ति के द्वारा प्रयुक्त होनेवाले 'गमन' शब्द का जो प्रत्क्षेपणादि क्रियाओं में भी प्रयोग होता है, उसका कारण है दोनों क्रियाओं में समान रूप से संयोग और विभाग को उत्पन्न करने की स्वतन्त्रक्षमता, इसी क्षमता या कर्तृत्व रूप सादृश्य के कारण ही उत्क्षेपणादि में भी गमन शब्द का प्रयोग होता है। अतः उत्क्षेपणादि क्रियाओं में गमन शब्द का प्रयोग गौण है।
__ न्यायकन्दली कुतस्ता क्षेपणादिषु गमनप्रत्ययः ? अत आह-गमनशब्दश्चेति । गमनशब्दग्रहणस्योपलक्षणार्थत्वाद् गमनप्रत्यय उत्क्षेपणादिषु भाक्तो द्रष्टव्यः । उपचारस्य बीजमाह-स्वाश्रयसंयोगविभागकर्तृत्वसामान्यादिति। गमनं स्वाश्रयस्य संयोगविभागौ करोति, उत्क्षेपणादयोऽपि कुर्वन्ति, एतावता साधयेणोत्क्षेपणादिषु गमनव्यवहारः। अनेन साधयेण गमने कस्मादुत्क्षेपणादिव्यवहारो न भवति ? पैङ्गल्यपाटलत्वादिसाधम्र्येण वह्नावपि माणवकव्यवहारः
क्यों कर होती है ? इस प्रश्न का समाधान 'गमनशब्दस्तु' इत्यादि से किया गया है। अर्थात् उत्क्षेपणादि कर्मों में प्रयुक्त गमन शब्द उपलक्षणार्थक है, अतः उत्क्षेपणादि के प्रत्ययों के लिए गमन शब्द के प्रयोग को गौण (लाक्षणिक) ही समझना चाहिए । 'स्वाश्रयसंयोगविभागकर्तृत्वसामान्यात्' इस वाक्य के द्वारा प्रकृत में लक्षणा का प्रयोजक धर्म ( लक्ष्यतावच्छेदक ) दिखलाया गया है। अर्थात् जिस प्रकार गमन अपने आश्रयीभत द्रव्य में संयोग और विभाग को उत्पन्न करता है, उसी प्रकार उत्क्षेपणादि क्रियायें भी अपने आश्रयीभूत द्रव्यों में संयोगों और विभागों को उत्पन्न करती हैं, इस सादृश्य के कारण ही उत्क्षेपणादि क्रियाओं में भी गमन शब्द का गौण प्रयोग होता है।
(प्र०) तो फिर इसी साधयं के कारण गमन में उत्क्षेपणादि शब्दों का भी गौण प्रयोग क्यों नहीं होता ? ( उ० ) 'अग्निर्माणवकः' इत्यादि प्रयोग के द्वारा जिस प्रकार माणवक में अग्नि पद का गौण व्यवहार तेजस्वित्वादि धर्मों के कारण होता है, उसी प्रकार पिङ्गलवर्ण और रक्तवर्ण रूप सादृश्य के कारण अग्नि में माणवक का गौण व्यवहार भी क्यों नहीं होता ? यदि इसका यह परिहार उपस्थित करें कि केवल हेतु है, अतः उपचार की कल्पना नहीं की जाती, किन्तु उपचार या व्यवहार रहने पर ही कारण की कल्पना की जाती है ( अतः लोक में अग्नि में माणवक शब्द का व्यवहार न होने के
For Private And Personal